ये तन्हाईयां मुझसे अब सह नही जाए,क्यूंकि हरपल तेरी याद जो सताये। -
ये तन्हाईयां मुझसे अब सह नही जाए,क्यूंकि हरपल तेरी याद जो सताये।
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वो रिमझिम सा नयन तेरा,वो प्यारा सा चमक तेरा,हो गए है उसमें हम गुमशुदा बार-बार...कियुकि तुझपे ही लिखता जाए ये कलम मेरा। -
वो रिमझिम सा नयन तेरा,वो प्यारा सा चमक तेरा,हो गए है उसमें हम गुमशुदा बार-बार...कियुकि तुझपे ही लिखता जाए ये कलम मेरा।
वो काफ़िले मेरे आस-पास मेरे दरमियां से इस तरह गुज़रते थे...कि जैसे उसमे ही वो मेरे पेश-ओ-यक्ष की बुनियाद को शव समझ ले जा रहे हो।(पेश-ओ-यक्ष का अर्थ परमात्मा की जादूई शक्ति) -
वो काफ़िले मेरे आस-पास मेरे दरमियां से इस तरह गुज़रते थे...कि जैसे उसमे ही वो मेरे पेश-ओ-यक्ष की बुनियाद को शव समझ ले जा रहे हो।(पेश-ओ-यक्ष का अर्थ परमात्मा की जादूई शक्ति)
न निकलो घर से बाहर...योग साध्य ही प्रण बना लो,वरना बनोगे कोरोना का कारण।। -
न निकलो घर से बाहर...योग साध्य ही प्रण बना लो,वरना बनोगे कोरोना का कारण।।
घाव इतने है कि अब ज़ख्म भरने के लिए किसी मरहम की ज़रूरत नहीं...उसने हमें मोतियों की तरह टुकड़ो में है इतना बांटाकि अब पिरोने के लिए किसी सुई-धागे की ज़रूरत नहीं। -
घाव इतने है कि अब ज़ख्म भरने के लिए किसी मरहम की ज़रूरत नहीं...उसने हमें मोतियों की तरह टुकड़ो में है इतना बांटाकि अब पिरोने के लिए किसी सुई-धागे की ज़रूरत नहीं।
माँ तेरे आँचल की छांव का, वो सुनेहरा ख़जाना कहाँ है,क्योंकि फिर से तेरे आंगन मैंने, खेलने का अफ़साना सजाया है। -
माँ तेरे आँचल की छांव का, वो सुनेहरा ख़जाना कहाँ है,क्योंकि फिर से तेरे आंगन मैंने, खेलने का अफ़साना सजाया है।
है नही किसी के पास इतना भी साहस और शौर्य जो समय से अंत तक खुद को संभाल सके,कहते है न कि: वो दिया ही क्या, जो एक आंगन और घर को रौशन तक न कर सके।ठीक उसी प्रकार: वो सामर्थ्य ही क्या जो खुद को खुद पर गर्व तक न करा सके। -
है नही किसी के पास इतना भी साहस और शौर्य जो समय से अंत तक खुद को संभाल सके,कहते है न कि: वो दिया ही क्या, जो एक आंगन और घर को रौशन तक न कर सके।ठीक उसी प्रकार: वो सामर्थ्य ही क्या जो खुद को खुद पर गर्व तक न करा सके।
ये सनसनी सी हवा बहकने को तैयार बैठी है,है कोई ज़रिया किसी के भी पास, जो इसे रोक सके। -
ये सनसनी सी हवा बहकने को तैयार बैठी है,है कोई ज़रिया किसी के भी पास, जो इसे रोक सके।
हो तुम,जिसपे अगर भवरा बैठ जाये तो वो भी अपने सारे गम भूल जाता हैं। -
हो तुम,जिसपे अगर भवरा बैठ जाये तो वो भी अपने सारे गम भूल जाता हैं।
इंसानियत ही इंसान को पीसता है,जैसे पीसता है चक्की हर गेहूँ को,वैसे ही इंसान के साथ मन भी पिस्ता है,जैसे गेहूँ के साथ घुन को। -
इंसानियत ही इंसान को पीसता है,जैसे पीसता है चक्की हर गेहूँ को,वैसे ही इंसान के साथ मन भी पिस्ता है,जैसे गेहूँ के साथ घुन को।