हम भी चाहते हैं की कभी
कोई हमें भी थोड़ा ज़रूरी समझे ,
कि हमें कोसने की बजाय कभी
बैठकर हमारी भी मजबूरी समझे ,
के कोई तो हो जिसके
ज़हन में ख़ौफ़ हो हमें खोने का ,
के कोई तो हो जो हमारे बग़ैर
अपनी जिंदगी अधूरी समझे..!!-
तुम्हारी बेरूखी का खामियाजा
अब मुझको भुगतना ही पड़ेगा,
कि मेरे उलझे हुए शब्दों को अब
हर रोज इस दुनिया को सुनना पडे़गा..!!
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सीधे साधे लड़के रह जाते हैं अक्सर गुपचुप, गुमसुम, ब्लॉकहोल सा खाली एकांत लिए..
लबों पर झूठी मुस्कान,
ऑंखों में भर उदासी,
नाखूनों से दीवारें कुरेदने की कोशिश में,
खिड़कियों से तांकते,
तो कभी मोबाइल में झांकते,
किसी पेंडुलम की तरह,
किसी के प्रेम में अपने प्रेम की तलाश करते हुए..!!
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उसे क्या फर्क पडेगा तेरे होने ना होने से,
जो ज़रा भी नहीं घबराता तुझे आखिर में खोने से..!!
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Sometimes I stay SILENT because no words can explain what's going on , in my heart and mind .
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रात हो गयी है,
क्यूँ जगे हो और किसकी ख़ातिर ?
किसकी ख़ातिर उदासियों को पनाह दे रखी है ?
जानता हूँ दुःख कोई चाहकर नहीं संजोता
मगर हम इंसानों की फ़ितरत होती है जो जवाब हमें नहीं मिल पाते,
हम दूसरों को देते फिरते हैं,
मैं भी तो शायद वही कर रहा था।
लेकिन अब नहीं,
मैं अब नहीं समझाऊंगा तुम्हें ना ही कोई झूठ दिलासा देकर
तुम्हारा मन बहलाऊंगा।
चीजें टूटती हैं तो दिलासों से नहीं जुड़ती।
ये मुझसे बेहतर कौन जानता है।
हमें अपने टूटे हिस्सों को दुनिया के सो जाने तक
खुद ही बैठकर तकना होता है,
उनका मातम खुद ही मनाना पड़ता है।
मैं भी अभी मना रहा हूँ,
तुम भी उधर मना रहे होगे।
मानो या ना मानो मगर ये सच है की
हम हमेशा दूसरे के दुःख से ख़ुद का दुःख आँकते हैं।
और तसल्ली मिलती है जानकर की
हम जैसे और भी कोई दुःखी है,
सिर्फ़ हम अकेले नहीं हैं।
मैं तुम्हारे लिए वो शख़्स बनना ज़्यादा पसंद करूँगा
जो कंधे पे हाथ रखकर कह सके की
" हाँ मैं भी दुःखी हूँ । "
दुःख अपना अंत कई बार दूसरों के अधिक दुःख में ढूंढता है।
जानता हूँ तुम्हें ये अजीब सी बात लग सकती है,
और आज अगर नहीं भी समझे तो शायद कभी अगर ज़्यादा दुःखी हुए तब आकर पढ़ना इसे,
तब ज़्यादा समझोगे..!!
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कुछ कहना था तुमसे
पर कैसे कहूँ
मन की गिरहें खोल दूं
या अब भी चुप रहूँ
सोचता हूँ बोल के भी क्या ही होगा
दर्द के सिवा कुछ भी तो न होगा
कुछ मलाल मुझे ताउम्र सताएगा
मिल के भी तू न मिल पाएगा..!!-