मेरे साथ दिक्कत बहुत है.
तुम कैसे टिक पाओगे?
(आगे कि कविता शीर्षक में )-
मेरी ख़ामोशी ही मेरी आवाज़,
समझ न सको मुझे कभी तो मेरे शब्दों को ... read more
कभी कभी कुछ कहानियां बस छू कर गुजर जाती है
कभी वापस आकर दुबारा न छूने के लिए
बस तस्वीरे जिंदा रहती हैं
वो भी सिर्फ आंखों में...-
कान्हा तुम धन आपनो
तुम बिन कछु न सुहाई
प्रीति करू कमल चरणन की
तेरी विरह में त्यग तज जाई
कान्हा तुम मेरा मन बनो
तुम्ही बनो मेरा प्रेम
तुम बिन कहां हिय लगे
तुम ही विरह की देन
कान्हा जी
सुकूं तुम, विलाप तुम
अंत तुम, शुरुआत तुम
ज़िंदगी में हर पल साथ साथ तुम
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करते करते बातें,
एक दिन खत्म हो जाएंगी
बचेगी बस खामोशी
जो बाटी भी नहीं जाएंगी...
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वो जो कहते हैं उन्हें वक्त नहीं
क्या खूब बहाने है दिल चुराने के
बात केवल तरजीह की थी सनम
क्या खूब वक्त पे डाली तुमने..-
जब अपनी ही नज़रों में उठना मुश्किल सा लगे..
जब अपनी ही नज़रों से नज़रे न मिले
तुम टूट से जाओगे जब
जब लगेगा की कुछ भी कर पाने के काबिल नहीं बचे हो तुम
जब सब हाथ से रेत की तरह फिसलता सा लगे
तो भी खुद को हिम्मत देना और तुम कर लोगे एक दिन
ये बात खुद से कहना
बस तुम हमेशा सकारात्मक रहना...
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एक बात है!
कुछ कमियों की
न कहने की न सुनने की
बस छुपा छुपा कर रखने की
न समझने न समझाने की
एक बात है!
कुछ कमियों की
जरा जोर जोर से हंसने की
वो नज़र कहां से लाओगे
जो न देखे इन कमियों को
और देखे भी तो समझ जाए
की ये कमी भी कोई कमी नहीं
ये खुद में ही पूरी सी है
ये कभी नहीं है बड़ी हुई
नज़रों नज़रों की फेरी है
ये कमी न तेरी है न मेरी है।
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ये क्या बात हुई की कम उम्र के लोग किसी भी परिस्थिति में ढलने के लिए अनुकूल होते हैं और सारे उम्रदराज लोग प्रतिकूल
ये तो एक धारणा बन गई हो जैसे...
कहा जाता है कि सीखने और बढ़ने की कोई उम्र नहीं होती तो ढलने की उम्र कैसे तय हो गई भाई...?
ये तो अपना उल्लू सीधा करने जैसी बात हो गई
की उम्रदराज हैं तो जीने दो उन्हें उनकी धारणाओं के साथ..और खुद को ढाल लो उनके हिसाब से,
परिवर्तन ही संसार का नियम है तो ये उम्रदराज लोग क्यों नहीं स्वीकारते..सारे परिवर्तन उनके हिसाब से होंगे ये कहां लिखा है.. ये तो ऐसा लगता है जैसे जो वो नहीं कर पाए वो किसी और को भी करने नहीं देंगे।
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