AhsaS UnKaHE Se  
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Joined 8 May 2021


Joined 8 May 2021
29 APR AT 9:58

जब तक मैं संभालती रही घर
जिम्मेदारी
उन्होंने संभाला खर्चा
तो बोझ बना दिया।
बेटी🥹

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29 APR AT 9:41

हजारों खामियां दिखती है जिन्हें
जिनकी पहली राय थे हम।

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29 APR AT 9:29

उस स्त्री की ससुराल में कभी इज्जत नहीं होती
जिसका मायका उसे इज्जत नहीं देता
चाहे मायका कितना भी समृद्ध क्यू न हो।

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29 APR AT 9:24

बहन की पाबंदियां निर्धारित करने वाला भाई
अपनी बेटी के पाबंदियों को आजादियां बताता है।

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29 APR AT 9:18

बेटियां घिसती है मेंहदी की तरह
रंग बहुओं पे चढ़ता है
नींव बेटियां रखती है
नेमप्लेट बहुओं का चढ़ जाता है।

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29 APR AT 9:12

जहां बहुएं जरूरी हो जाए
वहां बेटियों की जरूरतें तक पूरी नहीं होती।

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29 APR AT 9:05

जरूरी नहीं की
जिसके साथ हमेशा भेदभाव हो
ओ बहू ही हो
बहुत से घरों में बेटियों से भेदभाव किया जाता है।

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26 APR AT 14:35

खुशी हो
लिख लेते है

दुःख हो
लिख लेते है

उलझन हो
लिख लेते है

हो मन में कोई बात
लिख लेते है

लिखना न सीखा होता,तो होता क्या
रह जाती हर बात मन तक
होता न लेखनी का भी साथ
तो होता क्या

बिखरे होते जज्बात,यही होता
और होता क्या
अधूरी होती आश
होता न इक कलम का भी साथ
जीवन की तरह कोरे होते पन्ने
बाकी हर ख्यालात
और होता क्या।

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26 APR AT 14:24

समझदार क्या हुई
मुझे कोई समझता ही नहीं।

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22 APR AT 14:09

खामखां बदनाम हैं ये कमरे
ये उमर,ये मोबाइल,ये मकान

ये तो सुविधा के लिए बने थे
रिश्ते बिगाड़ता है सिर्फ और सिर्फ इंसान।।

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