तेरे तसव्वुर में हर रात डूबा रहा,
इश्क़ में रूह तक भीगती रही,
तेरा नाम लिखा तो हर लफ़्ज़ में आईना बना,
हर याद राहत सी चुभती रही।
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सिक्के तो चमक रहे थे, पर दिल अंधेरों में थे,
लोग बिक रहे थे, जज़्बात घेरों में थे।
दौलत का नशा आँखों में था,
पर सुकून किसी फ़कीर के सीने में था।
हर मुनाफ़िक़ मुस्कुरा रहा था बाज़ार में,
और सच बोलने वाले कंगाल नज़र आ रहे थे।-
कई रातें ख़ुद से मुक़ाबला करते गुज़रीं,
हर बात पर दिल से हिसाब करते गुज़रीं।
लोग समझते हैं कि हम चुप रहते हैं,
कौन समझे — हम अंदर ही अंदर शोर-ए-गुल करते गुज़रीं।-
अभी बाकी चिंगारी,
कहीं ना कहीं,
अल्फ़ाज़ोन कि चोट,
कहीं ना कहीं,
खामोश था,
खो दिया तुम्ने हमे,
फिर मिलूंगा,
कहीं ना कहीं,-
हमे भी सीखना है,
उर्दू के ज़ुबान,
बड़े अदब के साथ,
बेज्जत होना पड़ता है,-
हर बार का,
रूठना सही नही,
हर दफा मै ही क्यो,
मै हर बार नाकाम,
हो जाता हूं,
इस बार,
इम्तिहान दे के देखो तुम,-
मर जाऊंगा तब,
याद करना हमें,
के था कोई ,
जो वक़्त से अज़ीज़,
समझता था,-
बैठूंगा फुर्सत से,
लेकर कलम अपनी,
ये हवा से पन्ना,
उड़ जाता है,
एक खत लिखता नहीं के,
दूसरा कोरा खुल जाता है,-
मोहब्बत तुम्हारी,
माशाल्लाह,
मिले तो सलाम नही,
खुदा हाफिज की,
जल्दी है,-