अब तो इन्तज़ार की भी इन्तेहा
हों चुकी हैं।
लिखें जिसमें नज़्में तुझ पर
वो किताब कहीं खो चुकी हैं।
अब सोचता हूं शायद याद
ना करने का तुझे।
पर समझें कहा मन को तुम्हें
गए काफी देर हो चुकी हैं।
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Jaane kesa yeh kab kissa hua..
Kyu शायराना mera kuch hissa hua..-
वो कुछ फरिश्ते से मिले हमको,
और जिंदगी के रंग हीं बदल गए!
बस हमें आदत लगी उनकी और
उनके धंग हीं बदल गए!-
अब लिखकर उसे भुलाना चाहते होंगे
शायद शायर।
और फिर महफ़िल ने उनसे
एक ओर ग़ज़ल की गुज़ारिश की होगी।-
अब हम फाड़ देंगे पन्ने उस किताब से
जिस पर लिखा तेरा नाम होगा।
जिस शख्स कि जगह हो मन में उसका
कागज़ पर क्या काम होगा।-
Anjaane se lagte hai khudko,
Jaane kese par,
log humko pehchante hai!-
मैं खोता चला गया था
यूं साथ तेरे।
तुझे खोकर में कहीं
खुद से भी कभी मिला नहीं।-
मांग कर भी देख लिया
ख़ुदा से हार रोज़।
अब मेरी वो सुन भी ले तो उसका
कहर लगता है ।
जिस तरह चाहा था हमने
किसी रोज़।
अब कोई चाहें भी तो हमको
ज़हर लगता है!
जिस जगह घर था उसका
मोहल्ला वो जान था मेरी!
आज मुड़ कर देखे तो
बंजर उसका शहर लगता है!
चाहकर भी देख लिया हमने
किसी रोज़।
अब चाहने का सोचना भी
ज़हर लगता है।-