Aghora   (K. Soham)
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Joined 7 July 2020


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6 FEB AT 1:07

जवानी- बुढ़ापा

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30 DEC 2022 AT 1:31

तृण

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21 OCT 2022 AT 5:59

जंगलराज: एक गर्दभ कथा

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20 JAN 2022 AT 12:47

मेरा घर
रूदन में लिपटी
ये दिवारे
बरामदे के
कोने में बैठी उदासी
बरगद की स्ट्रीट लाईट
से रिसती
चुभन
हर रात चूम लेती हो
चेहरे
शहर की गलियों के
ठंड से तड़प
उठती रातें
नशे में धुत हुआ
चाँद
ताकते
तारों के झुंड
और..............?
और ये ख्याल और तुम!

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18 JUN 2021 AT 2:58

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13 JUN 2021 AT 21:09

किसी सुरंग में चलना,
गहरे नीले रंग से पुती हो
जिसकी दीवारे
रौशनी थोड़ी कम हो मगर
रंग बहुत गहरा हो।
आकाश का एक
छोर मेरी आशाओं से बंधा हो
और दूसरा निराशावाद से,
जीवन सुखी तलहटी से जुड़ा
या किसी रेजगार से
जहां से न दिखे
सवेरे, राते और रौशन गलियां
धुंध ही धुंध हो
शून्य को घूरती बूढ़ी आंखे
नरभखियों से तो बेहतर होगी।
युँ मेरा बेसुध हो जाना
और फिर उसी खाई में गिर जाना,
थोड़ा ठगा सा लगता है
मगर ये
अंधेरे में कैद सूनेपन से अच्छा है।
किसी सुरंग में
चलना और
यूँ बेसुध हो जाना।

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8 JUN 2021 AT 21:08

हवा वृक्ष मेघ
सब है
एक ठंडी लहर भी है
बाहर
मन किसी
सीधी लकीर सा
हो गया
मानो संकुचित धरातल
क्षितिज से थोड़ा ऊपर
कविताओं में अल्प विराम सा
उलझा कवि
किसी स्त्री के दिए
उल्हानो में उलझा है अभी
अभी थोड़ी देर
में वो किसी काम में लगेगा
और सब कुछ किसी
शांत धरातल सा हो जायेगा
कोई आंदोलन नही
कोई श्रृंग नही
ना कोई गर्त।

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8 JUN 2021 AT 21:05

कभी लगता है
बूढ़ा हो गया है वो
कभी लगता है अभी
कुछ साल पहले ही
तो जन्म हुआ
अभी रोएगा चीखेगा
और फिर मां कहेगी
चुप हो जाओ,
वो घाटी के रास्ते से
आएगा तुम्हे ले जायेगा।

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1 JUN 2021 AT 11:51

अस्तित्व, पीड़ा और निराशावाद।


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30 MAY 2021 AT 21:23

जब तुम्हारे कंटीले अधरो पे
अपने होठ रखूं तो
खून रिसता रहे
उन दरारों से,
मृग लोचन से
तुम्हारे चक्षु
मेरे नए नए बने
घावों को कुरेदे और
मैं पीड़ा से भरे प्रेम
से तुम्हें देखूँ।
ठीक प्रणय के बाद
तुम किसी खंजर से
एक बड़ा सा घाव मेरे
हृदय में करना,
इतना प्रयाप्त की
मुक्त हो जाऊं।

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