वक़्त के पीर में नहीं हो तुम,
मेरी तहरीर में नहीं हो तुम,
रोज आते हो मेरे ख़्वाबों में
मेरी ताबीर में नहीं हो तुम,
चूमकर हाथ मुझसे ये बोली
मेरी तकदीर में नहीं हो तुम,
गैलरी में हज़ार फोटो हैं
साथ तस्वीर में नहीं हो तुम,
तुम हमारी गिरफ्त में हो पर
मेरी ज़ंजीर में नहीं जो तुम,-
वक़्त के साथ-साथ चलते हैं
शाम होते ही घर निकलते हैं
कटघरे में खड़ा मिला राँझा
हीर बोली थी भाग चलते हैं
आपको क्या पता मोहब्बत का
आप तो चादरें बदलते हैं
उम्र की बात ही ख़सारा है
बर्फ़ जैसे क्यों हम पिघलते हैं
जिसकी हसरत थी वो नहीं हासिल
अब चिता संग हम भी जलते हैं
क्यों तक़ल्लुफ़ करें जहाँ भर की
इश्क़ में हाथ सब ही मलते हैं
उनसे अब बात भी नहीं होती
हम भी कमरें से कम निकलते हैं-
उसकी तहरीर देख लेता हूँ,
सुर्ख शमशीर देख लेता हूँ,
मुझको तन्हाई देखना हो जब
राँझे में हीर देख लेता हूँ,
इश्क़ करने कि जो नसीहत दे
ऐसे कुछ पीर देख लेता हूँ,
दिल अगर इंकलाब करता है
अपनी ज़ंजीर देख लेता हूँ,
मुझको जन्नत भी देखना था और
सो मैं कश्मीर देख लेता हूँ,
फोन पर बात होनी मुश्किल है
उसकी तस्वीर देख लेता हूँ,-
तुम्हारे शहर तो आता रहूँगा
मगर इस दिल को समझाता रहूँगा
हमारा फोन नंबर लिख के रखना
किया जब कॉल बतलाता रहूँगा
शहादत दो मुहब्बत एक से है
नहीं तो बात मैं दोहराता रहूँगा
मुझे तुम भूलने पर ज़ोर देना
तुम्हें जब याद मैं आता रहूँगा
रहूँगा दूर तेरी दस्तरस से
मगर तुमको नज़र आता रहूँगा
मुझे तुम छोड़कर जाओ कहीं भी
तुम्हारे ख़्वाब में आता रहूँगा-
आँखें बता रही हैं मोहब्बत तुझे भी है
चाहत बता रही है ज़रूरत तुझे भी है
इक रोज़ इस अज़ाब से बाहर निकल गए
उल्फ़त बता रही है अज़ीयत तुझे भी है
हम दोस्ती का हाथ बढ़ाते रहे मगर
फिर ये ख़बर हुआ कि अदावत तुझे भी है
गर्दन को चूमने का इरादा किया था मैं
फिर होंठ ने कहा कि इनायत तुझे भी है
दो चार दाँव खेल के मालूम ये हुआ
बिल्कुल हमारे जैसे महारत तुझे भी है-
जिस्म से रूह में उतरना है
जो है ख़ाली जगह वो भरना है
चाहते हैं सभी के मर जाऊँ
मारो मुझको मुझे तो मरना है
हम मोहब्बत के अब नहीं क़ाबिल
हो सके जो भी मुझको करना है
वो गले से नहीं लगायेगा
उसके पैरों में सर को रखना है
मुझको समझा रही है ये दुनिया
तुम हो पागल तुम्हें तो मरना है
मौत को हम मज़ाक समझे थे
यार अफ़ज़ल तुम्हें तो डरना है-
हर बात है वही पर मतलब बदल गए हैं
पहले नहीं थे ऐसे वो अब बदल गए हैं
इक दिन वो बोल बैठी हो बेवक़ूफ़ कितने
उम्मीद क्यों लगाई जब सब बदल गए हैं
हो हम मुनाफ़िक़ों को कैसे नसीब मोमिन
दोनों उसी ख़ुदा के पर रब बदल गए हैं
वादा किया था हमने कि साथ हम रहेंगे
जिस शौक से थे बोले वो लब बदल गए हैं
ये कैसा है ता'अल्लुक़ न दोस्ती मोहब्बत
देखो ये काफिरों के मज़हब बदल गए हैं
अफ़ज़ल को मौत आए ये कर रहे दुआ हम
होगी दुआ मुकम्मल कि मंसब बदल गए हैं-
सब कुछ हमें ख़बर है नसीहत न दीजिए
हम हैं फ़कीर हमको हुकूमत न दीजिए
ज़िंदा रहे तो आपने पूछा कभी न हाल
अब क़ब्र में पड़े हैं ज़ियारत न दीजिए
धड़कन थमी हुई है तबीयत ख़राब है
लाएँ दवा कहाँ से अज़ीयत न दीजिए
सबके नसीब में नहीं होती मोहब्बतें
मरते हुए को आप मोहब्बत न दीजिए
हम सब्र कर रहे थे मगर तुम नहीं मिले
अल्लाह तन्हा जीने की आदत न दीजिए
जो लोग कह रहे हैं ख़सारा है इश्क़ में
उनको वफ़ा के शहर में इज़्ज़त न दीजिए
सब ग़लती माफ़ उसको मगर शिर्क तो नहीं
मौला गुनाहगार को जन्नत न दीजिए-
ख़ुद को दिलदार कर भी दो जानम
इश्क़ इज़हार कर भी दो जानम
आपकी याद आ रही हमको
हमसे अब प्यार कर भी दो जानम
आप को देखकर हुए पागल
हमको बीमार कर भी दो जानम
हो गए साल भर मिले हमको
सब हदें पार कर भी दो जानम
अपनी तुम गोद में सुला लो फिर
दर्द को तार कर भी दो जानम-