Afzal Ansari   (مغلوب)
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Joined 28 June 2018


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7 APR 2021 AT 23:20

अपने पूरे सफर की दास्तान लिखता रहा
एक शख्स ता उम्र रोटी, कपड़ा और मकान लिखता रहा।

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1 APR 2021 AT 13:43

تیری کہی باتوں پہ عمل پزیر ہوتے
ہم ہم نہ ھوتے کچھ عجیب ہوتے

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17 MAR 2021 AT 22:33

मैंने उम्र लगा दी अपने ही वादे से इंकार के लिए
काश कोई रास्ता तो होता इस से फरार के लिए
अब तो सहर भर में भटकता हूं ज़िन्दा लास बनके
दो गज जमीन भी मयस्सर नहीं मेरी मज़ार के लिए
ता उम्र करता रहा हूं में इंकार तेरे हसीन होने का
अब तो दोज़ख ही ठिकाना है मुझ गुनहगार के लिए

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17 MAR 2021 AT 22:16

लब पे लब रख कर कहीं नई दुनिया में निकल जाना
सांसों की आंच में जल कर धीरे धीरे पिघल जाना
ज़िंदगी को करीब से देखने की अगर रखते हो ख़ाहिश
मुहब्बत के सफ़र में थोड़ा सा तुम भी फिसल जाना

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12 MAR 2021 AT 21:48

बचपन कहीं पीछे छूट गया और जवां हो गए हम
मानो अब यूं लगता है के जैसे फना हो गए हम

بچپن کہیں پیچھے چھوٹ گیا اور جواں ہو گئے ہم
مانو اب یوں لگتا ہے کہ جیسے فنا ہو گئے ہم

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11 MAR 2021 AT 9:24

इन मुसीबतों से मैंने निकलना सीखा है
बड़ी ठोकरें खा कर मैंने चलना सीखा है
बहोत पाले हुए थे आस्तीनों में सांप मैंने
उन्हें उंगलियों से मैंने मसलना सीखा है

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7 MAR 2021 AT 23:35

अफसाने उसके अपने गीतों में सजा लूं
एक पल ठहरे तो उसकी तस्वीर बना लूं
जो रुका हुआ हूं तो बस यही बात यारों
वोह हां कह दे तो उसको अपना बना लूं

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7 MAR 2021 AT 17:41

में भी देख रहा था यह तमाशा चुप हो कर
सब उसकी सेवा में थे क्या राजा क्या नोकर

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7 MAR 2021 AT 11:09

में किस राह से किस मंज़िल की तरफ़ निकल चलूं
इस सवाल का जवाब मांगू अगर कभी खुदसे मिलूं

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7 MAR 2021 AT 10:48

और सफ़र ए मुसलसाल
दर्द ए कल्ब में इजाफा हो रहा है पल पल

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