#नहीं_कोई_भीम_से_बड़ा
मठ मन्दिर, करोड़ों देवी देवता, आया न कोई काम,
तिमिर मिटा किया उज़ाला, उस भीम को सलाम।
पैर की जूती थी नारी, सदियों अत्याचार सहा भारी,
आज़ शिखर को छू रही, संविधान से पाया मुक़ाम।
नहीं कोई भीम से बड़ा, जो मजलूमों के लिए लड़ा,
शोषण के विरुद्ध दुनिया में, है बाबा साहेब का नाम।
मानवता के प्रेम पुजारी, जिसमें सारी ज़िंदगी गुज़ारी,
संविधान बना संगठित रहने का, दे गए अमर पैगाम।
सहकर घोर अपमान, फिर भी देश का बढ़ा गए मान,
महामानव को परिनिर्वाण दिवस पर 'दीप' करे प्रणाम।
✍️©® हरदीप सिंह
बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)-
है लोगों से प्रेम मुझे,
मैं बीज प्रेम के बोता हूँ
अभिव्यक्ति का शौक मुझे... read more
नहीं कोई भीम से बड़ा
मठ मन्दिर, करोड़ों देवी देवता, आया न कोई काम,
तिमिर मिटा किया उज़ाला, उस भीम को सलाम।
पैर की जूती थी नारी, सदियों अत्याचार सहा भारी,
आज़ शिखर को छू रही, संविधान से पाया मुक़ाम।
नहीं कोई भीम से बड़ा, जो मजलूमों के लिए लड़ा,
शोषण के विरुद्ध दुनिया में, है बाबा साहेब का नाम।
मानवता के प्रेम पुजारी, जिसमें सारी ज़िंदगी गुज़ारी,
संविधान बना संगठित रहने का, दे गए अमर पैगाम।
सहकर घोर अपमान, फिर भी देश का बढ़ा गए मान,
महामानव को परिनिर्वाण दिवस पर करे 'दीप' प्रणाम।-
समय बुरा जब आएगा
कोई ना साथ निभायेगा।
यारे-प्यारे दोस्त सभी से,
सम्पर्क दूर हो जाएगा।।
ख़ुशहाली के दिन हैं तेरे
तू नए-नए रिश्ते बनाएगा।
वक्त पड़े पर अपने सभी,
मित्रों को शिफ़र तू पायेगा।।
नहीं करेगा बात भी कोई
तू एकाकी हो जायेगा।
कर याद पुरानी बातों को,
बरबस सिसकियां लगाएगा।।
अपना-अपना कहकर तू
कबतक दिल बहलाएगा।
कोई नहीं "दीप" अपना यहाँ,
कब समझ तुझे ये आयेगा?-
वक्त बुरा है गुज़र जाने दो
अपनों को गैर हो जाने दो।
निभाएंगे ताल्लुक सब तुझसे,
ज़रा वक्त तो आने दो।।-
मॉं जब-जब तकलीफ़ में होती है
आँखों से धारा अश्रु की बहती है,
दरकिनार कर अपने सभी गमों को
क्या हुआ मेरे बच्चे मुझसे कहती है।-
जिस तादात में आज लोगबाग भीम जयंती मना रहे हैं
यदि ये सभी उनके विचारों को
अपने जीवन में आत्मसात कर लें तो, इस देश को
भीम के सपनों का भारत बनने से कोई नहीं रोक सकता।-
ख़ुद को बदलने अब निकला हूँ
शीशे में जब देखा खुद को
बुरा सभी से पाया ख़ुद को
मैंने उनको बुरा कहा था
समझा नहीं था मैंने जिनको।
उन लोगों की अपने दिल में,
तस्वीर बदलने अब निकला हूँ
ख़ुद को बदलने अब निकला हूँ।
नादान था मैं कुछ ज्ञान नहीं था
जीवन पथ आसान नहीं था
मंद-मंद उस चलने वाली
पवन से कुछ नुकसान नहीं था।
उड़ने लगा था आसमान में,
पैदल चलने अब निकला हूँ
ख़ुद को बदलने अब निकला हूँ।
मिली बहुत हैं तोहमत मुझको
नहीं रही है जहमत मुझको
अपने किए पर शर्मिंदा हूँ
अब तुम बख्सों रहमत मुझको।
चलता रहा हूँ भटक-भटक के,
ठोकरों से संभलने अब निकला हूँ
ख़ुद को बदलने अब निकला हूँ!
ख़ुद को बदलने अब निकला हूँ॥-
याद आती है वो बात
तो रो देती है रात,
इससे तो पहले ही अच्छा था
जब हुई न थी मुलाकात।-
ह्रदय के अंतकरण का इन्तिख़ाब हो तुम,
जिसे पढ़ने को मन चाहे वही क़िताब हो तुम।-