Aditya Tiwari   (Alfaz)
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Joined 26 June 2018


Joined 26 June 2018
29 DEC 2021 AT 22:29

दिल के बाहर दुनिया सारी,
दिल के अंदर तुम और मैं,
आज मिले हैं कोई वजह है,
कल न मिलेगे तुम और मैं,

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6 NOV 2021 AT 17:16

दीवाली के दूसरे दिन,
आज फिर तुम्हे याद किया,
औरों के कुमकुम से संजोए माथे,
काफी खुशनुमा से लगते हैं,
मन कहता है तुम्हे भी कहीं न कहीं,
इंतजार होगा एक मैसेज का,
सोचता हूं ये रिश्ता क्या है,
एक भरम,
तुम्हारा मुझे और मेरा तुम्हे,
बस हमे उसे ही कच्ची मिट्टी के ,
खिलौने की तरह सम्हालना है,
हो सकता है परेशानियों का अंधेरा हो,
वक्त साथ न हो और शायद कह न सकूँ,
उसी पाक दिल से ये धागा तुम्हे लिखता हूँ ,

अक्षय रहे ये बंधन हमारा !!

happy bhai dooj behna..👩‍❤️‍👨

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20 OCT 2021 AT 22:17

ये दुनिया सपनों की बस्ती,
बस सच्चाई तुम और मैं,
आज मिले है कोई वजह है,
कल न मिलेंगे तुम और मैं,

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20 OCT 2021 AT 22:14

एक लम्हे की एक अरसे को,
याद पुरानी तुम और मैं,
आज मिले है कोई वजह है,
कल न मिलेंगे तुम और मैं,

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16 OCT 2021 AT 23:51

जिंदगी का खास है ये दिन तुम्हारी क्या कहूँ ,
चाहता हूँ पल दो पल संग तुम्हारे मैं रहूँ ,

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15 MAY 2020 AT 19:52

ये एक नाटक छोटा पर्दा,
दो किरदार है तुम और मैं,
आज मिले है कोई वजह है,
कल न मिलेंगे तुम और मैं,

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29 APR 2020 AT 23:59

जाने ऐसा क्यों होता है,
दिल इंसा का क्यों रोता है,
जाने सबके संग होकर भी,
क्यों तनहा इंसा होता है,

वो इतना तो कह सकती थी,
मुझे तुमसे बात नहीं करनी,
मुझे ऊँची मंजिल पानी है,
मुझे अपनी मात नहीं करनी,

कौन सा मैने उस दिल पर,
एक पत्थर सा रख देना था,
कौन सा आँखों मे उसकी,
सपने अपने भर देना था,

हाथों में हाथ नहीं होंगे,
हम फिर से साथ नहीं होंगे,
अब फिर ये रात नही होगी,
अब अपनी बात नही होगी,

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26 APR 2020 AT 20:13

जब घड़ी में 11 बजते है,
फोन से मन उठ जाता है,
जो घर पर सब सो जाते है,
और लम्हे तन्हा हो जाते है,
घर की दीवारें आपस में,
छिपकर के बातें करती है,
जो तुम मखमल तकिये पे,
सर रखकर लेटी होती हो,
आँखों मे नींद नहीं होती,
बस कहने को ही सोती हो,
जब आधी करवट लेने पर,
ये बाल तुम्हे तंग करते है,
जब हवा के कतरे हौले से,
हलचल कानों में करते है,
इन सबसे परेशां हो कर के,

क्या खुद से बात करती हो !!
क्या तुम मुझे याद करती हो !!

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25 APR 2020 AT 20:41

मैं तुम्हे रोज याद करता हूँ !

जब रोज घड़ी में 11 बजते है,
फ़ोन चलाकर थक जाता हूँ,
पलकें खुद गिरने लगती है,
और बत्तियां बंद हो जाती है,
अंधरे की चादर ढकती है मुझे,
खुद को भी देख नहीँ पाता हूँ,
कविता का भी मन नहीं होता,
एक चेहरा अधसोयी आँखों मे,
यादों की सीढ़ियों से उतरता है,
सोने तक उससे बात करता हूँ,

मैं तुम्हे रोज याद करता हूँ !

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18 APR 2020 AT 12:38



हमें समझना चाहिए वक़्त मौके नहीं देता ,
रुख़स्ती गहरे घाव देती है,
लगाव ग़लतियाँ नही समझता ,
आँखे नम , ज़ुबाँ भारी कर देता है,
बात छोटी है पर अहम है ,
डरें ना पर फिक्र करें अपनी अपनों की,

कुछ न करें बस साथ रहें !
घर पर ही रहें घर पर ही रहें !


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