Aditya Sahay  
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Joined 17 April 2019


Joined 17 April 2019
20 JUL 2021 AT 11:12

खुदा से ऐसी मेरी कोई इबादत नहीं है
जिसे जीतने की मुझमें ताकत नहीं है

उस आसमां को चीर दूँगा एक रोज मैं
पर अफसोस आज वैसी हालत नहीं है

अक्सर मैं पानी सा ही रहता हूँ, शायद
हर वक़्त आग दिखाने की जरूरत नहीं है

उम्मीद के दीया को एक तूफान क्या बुझाएगा
उस दीया को बुझाने की उसमें हिम्मत नहीं है

काँटों पर चल कर एक सफर तय करनी है मुझे
यूं किस्मत से मिली शोहरत की चाहत नहीं है

खुदा मुझे उस तलवार से बेहतर कुछ और बना देना
जिस तलवार को जंग में जाने की आदत नहीं है

मुझे तप कर अभी और भी निखारना है खुद को
यूंही मिट्टी में मिल जाने वाली मेरी शख्सियत नहीं है

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2 OCT 2020 AT 9:56

सत्य अहिंसा को अकेले लड़ते देखा है मैंने
नोटों वाले गांधी के हाथों उन्हें मरते देखा है मैंने

तेरी तस्वीर जिस भी दफ्तर में थी लगी हुई
वही तेरे विचारों का वस्त्र उतरते देखा है मैंने

जो आज राजघाट पर फूल चढ़ाएँगे सारे
उन सभी को जातिवाद करते देखा है मैंने

तेरा नाम लगा कुछ लोग बनते है बाजार में
तेरे नाम को उनके पीछे सड़ते देखा है मैंने

जिस देश को तूने नमक से था एक किया
उसे मजहब के नाम पर बिखरते देखा है मैंने

सच में बिल्कुल सच्चा तो मैं खुद भी नहीं
मगर उन जैसा बनने से खुद को डरते देखा है मैंने

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3 JUN 2020 AT 11:11

हर इश्क में एक राजा होता है, हर इश्क में एक रानी होती है
हर इश्क का एक ख्वाजा होता है, हर इश्क, उसकी मेहरबानी होती है

हर इश्क का खेल पेंचीदा होता है, बदलते मौसमों की रवानी होती है
कुछ इश्क खुद में मुकम्मल होता है, कुछ टूटते दिलों की कहानी होती है

हर इश्क कुछ दरिया सा होता है, किनारों पर कहाँ पानी होती है
हर जाने वाला शख़्स डूबा होता है, जो तैर गया उसी की जवानी होती है

हर इश्क में एक दीवाना होता है, हर इश्क में एक दीवानी होती है
ग़र इश्क, किसी से ज्यादा होता है, मशक्कत से उसे भूलानी होती है

हर इश्क में एक वादा होता है, हर किसी को उसे निभानी होती है
मुझे इश्क कुछ जहर सा लगता, सुना है, रोकर रातें बितानी होती है

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2 JUN 2020 AT 18:27

लगता है, अब भी, वो हमें अपना गुलाम समझती है
यूँही किसी मौके पर मिला, बेनामी इनाम समझती है
जब भी मन होता उनका, दिल तोड़ जोड़ लेती हमसे
शायद आजकल इसे ही, वो अपना काम समझती है

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2 JUN 2020 AT 9:09

ना जाने, आखिर मेरा ये कौन सा उमर(उम्र) आया है
जलाती धूप में भी, एक ठंडे छांव का असर आया है
दिल में बात, सिर्फ दुनिया जीतने की चल रही अभी
कैसे जानलेवा जुनून का तोहफ़ा ले ये सहर आया है

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31 MAY 2020 AT 18:45

ना जाने, किस उम्मीद के सहारे, मैं जीता रहा
अपनी ज़िन्दगी के, एक किनारे, मैं जीता रहा
एक दफा, मेरे बालों को हाथ लगाया था, तुमने
और सदियों तक, उसे बिना सँवारे, मैं जीता रहा

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30 MAY 2020 AT 11:28

इस ज़िन्दगी के सफ़र में, कुछ एक कमीनों का साथ मिल गया
हम कहाँ शरीफ थे साहब, हमारा भी तो उनसे ख्यालात मिल गया
और ज़िन्दगी गुजर जाती, फिक्रों की चिलचिलाती धूप में कहीं,
वो तो खुदा का रहम रहा, हर शाम, मस्ती भरा बरसात मिल गया

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30 MAY 2020 AT 11:18

एक आशिक़ को घमंड, अगर इश्क़ में ना हुआ, तो क्या हुआ
दिल सोच से नज़रबंद, अगर इश्क़ में ना हुआ, तो क्या हुआ
सारे पैतरे आजमाया करता, अपनी मोहब्बत! को पाने के लिए
अब इंसान, अक्लमंद,, अगर इश्क़ में ना हुआ, तो क्या हुआ

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29 MAY 2020 AT 13:44

साहब! वो मजदूर तो, एक शहर को, शहर बनाने गया था
झूठा इल्ज़ाम लगा है उसपर, कि वो शहर सिर्फ कमाने गया था

उसके भूखे पेट, खुद दो वक़्त की रोटी जुगाड़ नहीं कर पा रहे थे
बस इसीलिए, वो अपने घर से दूर, इस जालिम भूख को मिटाने गया था

अब क्या गलती थी उसकी, जो चाहा, बच्चे उस जैसा ना बने
उन्हें स्कूल भेज कर, वो शहर, भट्टी में, खुद को पकाने गया था

उसे कोई टाटा, बिरला नहीं बनने की ख्वाहिश नहीं थी
वो तो महज़, अपने बच्चों की जरूरतें पूरी कराने गया था

उसे रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए था सिर्फ
वो बेकसूर मजदूर शहर, अपनी ज़िन्दगी बचाने गया था

रिश्ता गाँव से तो, अब भी वैसा ही मजबूत था, उसका
बस ढंग से जीना का वादा, पिता ने लिया था उससे, वो बस उसे निभाने गया था

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28 MAY 2020 AT 17:20

कहीं साँसें है, कहीं सिसक है
कहीं सादगी है, कहीं ठसक है
कहीं काँटे हैं, कहीं गुलाब सी महक है
पक्षियों की चहचहाट में भी एक चहक है
ये सब यूँही है, या नई ज़िन्दगी की झलक है
आज बीते कल से कुछ तो जरूर अलग है
जग को मदमस्त हवा खुद में है डूबा रहा
ये पूरा समां तारों संग वापस से जगमगा रहा
पेड़ों से पत्तें निकल रहे, ना जाने ये किसकी धड़क है
माँ की ममता नरम है, पापा का भी तेवर नहीं कड़क है
फिर भी मेरे अंदर ना जाने, किस बात को लेकर झिझक है
वही साँसें है, वही सिसक है, आज भी कुछ तो नहीं अलग है

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