Aditya Rathore   (Adi)
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कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
Joined 9 December 2019


कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
Joined 9 December 2019
3 MAY AT 21:53

कितने आए,कितने गए,
तेरा जैसा कोई नहीं,
ना कभी मिला, ना मिलेगा।

तू खुदा की कोई दुआ,
मिले या न मिले आदि ,
ना भुला,ना कभी भुलाएगा,

कोसते रहे नसीब को उम्र भर,
फ़िर यूं हुआ कि तू आ गई,
अब ना कोई गिला,
ना वैसा,नसीब फ़िर मिलेगा।

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1 MAY AT 10:53

सूखा पसीना


पसीना सूखा तो कपड़ों पर रह गए सफेद धब्बे,
काली देह पर हर रोज़ उतरती रही नकाबपोश शक्लें।
सफेद कॉलर वालों की तिरस्कार भरी नजरें,
हड्डियों पर जमे सूखे मांस को चुपचाप गलाती रहीं।

उठती आवाजें,विद्रोही कलमें, लाल सलाम,
पथराई आंखों में नए ख़्वाब बोती रहीं।
वक्त बदला, जमीनें, झंडे, निज़ाम, और लोग भी,
मगर पीठ से चिपके पेट सदियों से कराहते रहे।

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26 APR AT 14:08

जब मन था ,किसी ने याद ना किया...
अब आदि हूँ मौजूद ,मग़र अब मन नहीं....

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21 APR AT 21:41

मैं था भी,आदि या मैं था नहीं,
मेरे जाने के बाद रुकसती कई बार हुई

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18 APR AT 15:16

कुछ अधूरी बातें

कुछ किस्से,
कुछ बातें,
कुछ मुलाकातें,
कुछ रिश्ते,
कुछ कहानियाँ—
अधूरी ही रह जाती हैं।

कभी वक़्त की कमी से,
कभी बेवक़्त की ठनी से,
कभी किसी और से,
कभी खुद की ओर से,
तो कभी बस यूँ ही—
बेमुकम्मल सी बातें रह जाती हैं।

छत तलाशते ज़मी रह जाती हैं,
कभी तस्वीरों में मुस्कान रह जाती हैं,
कभी नामों में पहचान रह जाती हैं,
आदि किसी एक की यादों में—
कभी पूरी ज़िन्दगी थम जाती है।

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9 APR AT 23:50

टूट के भी जताना मत,
तू ग़रूर बनाए रखना।
आदि जैसे हजार पर,
तू अना बचाए रखना।

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9 APR AT 23:04

दो रास्ते थे...

दो रास्ते थे बसर के,
एक उसे कबूल नहीं,
एक मुझे कबूल नहीं।

वो मकबूल था मगर,
एक वो मेरा हमराह नहीं,
एक मैं कोई दानिश नहीं।

मुश्किल क्या ठहरी समझे जो,
वो दोस्ती के इख्तियार में नहीं,
मुझे दोस्ती के सिवाय वो गवारा नहीं।
— % &हम दोनों ही सही थे अपनी जगह,
बस फासले थे जो मिटाए न गए,
वो वक़्त थम के देखता रहा,
हम क़िस्मतों में समाए न गए।

आदि दुआ थी जो मांग लेता,
जिसकी ख्वाहिशों में हम नहीं,
जैसे बारिश में भीगे हम नहीं।

लबों पे उसके नाम मेरा नहीं,
हर बार उसे मानता है खुदा,
वो हर दफ़ा बेखबर तो नहीं— % &

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8 APR AT 7:24

फिर मिलेंगे...

फिर मिलेंगे...
कोई नज़्म बनाते,
किस्से नए-पुराने कहते,
रूठते, मनाते, चाय बनाते।

फिर मिलेंगे...
चिड़िमार, डेमा की बातों में,
आदर्श की बहस करते,
पुरजोर गहमागहमी करते।

फिर मिलेंगे...
साथ रोटी तोड़ते,
उलझती गिरहें खोलते,
किसी और जगह,
किसी और वक़्त।

फिर मिलेंगे...
आदि की कहानी में,
या आपकी नोवल में,
बात पूरी करने।

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6 APR AT 22:26

बहुत कुछ होना चाह था,
अब जो है,वो बहुत है।

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24 MAR AT 21:01

क्या था,क्यों था,किसलिए था, क्यों पूछना था,
आदि जब रुकने को कहा,तुझे चले जाना था।

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