ADITYA RANJAN   (आदित्य रंजन)
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Joined 30 November 2020


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6 MAY 2021 AT 20:05

सरकार के कृत का उन्वान लिखूंगा,
कलम उठाऊंगा तो तूफ़ान लिखूंगा।

अंदेशा नहीं है तूझे अब भी इस हादसा का,
कैसे मैं तूझे अपने घर का दिवान लिखूंगा।

वालिद-वालिदा आएं मेरे साथ,बस यही काफी है,
चलो तेरे नाम अपने हिस्से का हरेक सामान लिखूंगा।

बचा ले इस आफत से मिरे घर को खुदा,
तेरे हक में ही तब पहला ज़ुबान लिखूंगा।

इस मौसम का हाल मत पूछा करो अब यार मिरे,
हालत यही रही तो अपने घर को ही श्मशान लिखूंगा।
✍️:-आदित्य रंजन

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2 MAY 2021 AT 8:16

कहेंगे न कुछ आप हुक्मरानों से,
हाल मत पूछिए अस्पताल के मेहमानों से।

शुद्ध हवा को भी तरस रही है दुनियां अब,
मंज़र देखते रहिए घर का बैठके श्मशानों से।

बेवक्त करके दवाई की कालाबाजारी ,
फल गिराते रहिए इन हरे-भरे बगानों से।

क्या होगा अब, मसानों की संख्या में वृद्धि,
अस्पताल भी नहीं बन पा रहा इतने खड़े मकानों से।

आर्यभट्ट वाले शून्य के इंतजार में बैठी है सरकार,
तो ठीक है, सुनते रहिए रूदन फटे पर्दे के कानों से।
✍️:-आदित्य रंजन

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2 MAY 2021 AT 8:14

कहेंगे न कुछ आप हुक्मरानों से,
हाल मत पूछिए अस्पताल के मेहमानों से।

शुद्ध हवा को भी तरस रही है दुनियां अब,
मंज़र देखते रहिए घर का बैठके श्मशानों से।

बेवक्त करके दवाई की कालाबाजारी ,
फल गिराते रहिए इन हरे-भरे बगानों से।

क्या होगा अब, मसानों की संख्या में वृद्धि,
अस्पताल भी नहीं बन पा रहा इतने खड़े मकानों से।

आर्यभट्ट वाले शून्य के इंतजार में बैठी है सरकार,
तो ठीक है, सुनते रहिए रूदन फटे पर्दे के कानों से।
✍️:-आदित्य रंजन

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20 APR 2021 AT 19:26

कम उपयोग किया कीजिए फोन अपना,
इससे भी नुकसान होता है शायद रिश्तों का।

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11 MAR 2021 AT 20:42

मैं मिजाजन खुद को तेरे करीब महसूस करता हूं,
यानि अपने आप को खुशनसीब महसूस करता हूं।

जुल्मतों को चीर आग बनने की फितरत है मेरी,
तौबा है कि सूरज भी अब बदनसीब महसूस करता है।

वह खड़ी होकर मुझे देखती रही घंटों भर सरापा,
अब अपने को मन-ए-गुमशुदा महसूस करती है।

कफ्तर निकल जाएंगे खोफ से रफ्ता-रफ्ता,
अब आस्मां भी अपने को सरगना महसूस करता है।

सैलाबे-नूर निकल रहे हैं तेरे शख्सियत से आदित्य,
अनदेखा करता था जो,अब अपना महसूस करता है।

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11 MAR 2021 AT 20:31

दर-दीवार को देखने से बज़्म यूं मिलता है,
आपको देखने से जैसे सुकूं मिलता है।

पहली वाली छोड़ गयी मुझे पता नहीं क्यूं,
पर इसका चेहरा भी तो उससे हु-ब-हु मिलता है।

कितना दिलकश नज़ारा है मियां हाट का,देखो
जान को सिर्फ जान कहने से कहां उसे सुकूं मिलता है।

कितना खुश नजर आ रहे ये नये जोड़े,
मुस्काते हुए कैसे इनका समय यूं कटता है।

किये बहुत गलती, बाद मुद्दतों पता चला इन्हें,
रो-रोकर भी जिंदगी इनका यूं संवरता है।

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8 MAR 2021 AT 13:17

दर दीवार देखने से बज़्म यूं मिलता है,
आपको देखने से जैसे सुकूं मिलता है।

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8 MAR 2021 AT 13:13

अब तेरे घर का बशिंदा हूं मैं,
इससे पहले एक शरीफ खानदान का उड़ता परिंदा हूं मैं।

दुपट्टा खींच देते हैं यहां हवशी,
तू फिक्र न कर अभी जिंदा हूं मैं।

और सियासत क्या है, चालबाजों का खेल
मंजर ये है कि इसमें बहुत गंदा हूं मैं।

जन्नत में भी हो रहीं हैं शर्मनाक हरकतें,
बाहर वालों मत पूछो कि कितना शर्मिंदा हूं मैं।

दो-तीन ताली और एक वाह के लिए ही लिक्खा है शेर मैंने,
लानत है कि अभी जिंदा हूं मैं।

कुछ विचारना हो तो आ जाना हवेली पर,
बेटा बिहार का प्रोपर बशिंदा हूं मैं।

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6 MAR 2021 AT 14:40

उसकी आह देती रही रात भर मेरे दिल पर दस्तकें,
रुआंशा हुआ मेरा मन हाय उसकी हठीले दस्तकें।

जगा देता है रोज सूरज निकल कर सभी को
ख्वाब के दरीचे पर जब होती है कमबख्त रोशनी की दस्तकें।

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6 MAR 2021 AT 14:08

गुजरा गली से उसके शाम को जब मैं,
दिखी वह मुझे किसी और के साथ।

पता लगाते हुए रात बीत गई, दर्द बहुत हुआ
सुबह पता चला थी अपने भाई के साथ।

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