क्या खूब नज़ारा है ना, हमारे प्यारे ज़माने के लिए
लोग सबकुछ बटोर रहें हैं, खाली हाथ जाने के लिए
कइयों के घर तोड़ रहें हैं, खुद का आशियाँ बनाने के लिए
साख़ और रौब दिखानें, ख़ून की नदियां बहाने के लिए
धर्मों के नाम पर मज़लूमो को, आपस मे लड़वाने के लिए
किसी की इज़्ज़त का दाम, भरे बाज़ार लगाने के लिए
उन्ही चंद से रुपयों में, ज़मीर बेच खाने के लिये,
दूसरों को नीचा, केवल ख़ुद को ऊपर दिखाने के लिए
सामने तारीफ़ करके, पीठ पीछे जमकर खिल्ली उड़ाने के लिए
समय आने पर अपनों पर ही, पीछे से खंज़र घुसाने के लिए
दूसरों के निवाले छीनकर, ख़ुद की भूख मिटाने के लिए
ख़ुद का वंश बढ़ाने को, बेटियां गर्भ में गिराने के लिए
बेवजह ही बेहिसाब फ़रेबी, शौहरत कमाने के लिए,
ख़ुद की मौत पर, परायों की झूठी भीड़ जुटाने के लिये
और ये सबकुछ......
"सिर्फ़ और सिर्फ़ खाली हाथ जाने के लिए"।।।
-आदित्य
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