ज़िन्दगी के साथ हूँ, इसलिए मज़बूर हूँ शायद।
तुमसे मिला भी नही, तुमसे मिल गया हूँ शायद।
जो दर्द था सीने में, शायद दवा बन गई हो तुम।
रूह से ही नही, सासो के लिए हवा बन गयी हो तुम।-
ज़िन्दगानी के पल शब्दों में बुनता हूँ,
कुछ अच्छा तो कुछ सच्चा लिखता हूंँ।