यह जिंदगी में लगी होड़ मैं तू क्यों हताश होता जा रहा है ,
क्यों खुद ही खुद से ओझल होता जा रहा है ,
यह साया कृत्रिम अंधकार का खुद ही मिट जाएगा ,
जिस सवेरे कि तू तलाश है करता वह खुद नए प्रकाश संग आएगा ।
बाधाएं जंजीरों में खुद बंध जाएंगी ,
प्रलय की आंधी खुद झोंके मानिंद सिमट जाएंगी ,
फासले ये खुद समीप आते जाएंगे ,
वो रास्ते तेरी मंजिल के खुद राह दिखाने आएंगे ।
राही मुसाफिर धूप तुझसे साक्षात करने आई है ,
नजरें कर उँची देख कुछ नम बूंदे संदेशा लाई है ,
इन बूंदों से ही फिलहाल अपनी तृष्णा को मिटाना है ,
तू कल कि छोड़ आज ही इस धूप को तुझे आजमाना है ।
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वह अंधियारे से निकालती है ,
दिल में सफलता का दीपक जलाती है ,
जिसे सारा जग देवी मानता ,
वह देवी मां कहलाती है ।
तकदीर बदल जाए उनकी,
अगर मां हाथ फेर दे ,
अपने सपनों की उन्हें चाबी मिल जाए ,
अगर मां साथ दे ।
कहानियों का पिटारा अपने साथ रखती ,
ठंड लगे तो ओढ़नी में छुपा लेती ,
वह हकदार है दुनिया के सबसे ऊंचे रत्न की ,
पर उसे पाने की कभी उम्मीद ना जगाती ।
लोरियां वह खूब गाती ,
अनेकों ज्ञान की बातें बतलाती ,
वह मेरी पहली शिक्षक बनती ,
जीने का सही ढंग सिखलाती ।
वह दुनिया की हर खुशियां देती ,
बदले में सिर्फ प्यार और इज्जत लेती ,
गलती से कुछ बुरा किया तो माफ करना माँ,
मैं जानता हूं माँएं दिल पर नहीं लेती ।
वह करिश्मे वाला ईश्वर जिसके सामने सर झुकाता वो माँ ही तो है,
औरों का पता नहीं पर मेरी सारी दुनिया मेरी माँ ही तो है ।— % &-
दीदार करना एक दफा उन दीवारों का ,
कुछ धुंधला सा लिखा नजर आता है,
नजराना लेना उस कुएं में चिल्ला कर ,
एक सन्नाटा वापस आता है।
दीवाकर के उजाले में,
जल रही क्रांति की मशाल ,
आजादी तो हक है अपना ,
पहले हम मांगे किचलू और पाल ।
रातें भी भयभीत हुई ,
एक ऐसा दुर्लभ कोहराम मचा,
सैकड़ों मासूमों की लाश सजाकर ,
निंदा और ज़िल्लत से इतिहास रचा ।
जिसे घिनौना समझते आदिवासी ,
कायरता का एक ऐसा परिचय दिया ,
अपने तकब्बुर को राख बनाकर ,
जाने कितनी उमंगों को भस्म किया ।
अब क्या ठिकाना उन मुसकानों का ,
रेशम सी कोमल संतानों का,
किसे अंदाज़ा नभ मे ऐसी काली घटा छाएगी ,
रब भी ना जाने फुलवारी में कब बहारें आएंगी ।
वह मिट्टी ठहरे ठहरे बिखर गई ,
हवाएं सहमे सहमे रुख बदल गई ,
अमर हुई मिट्टी जो जल पी पी कर ,
आहुति में अपभय की धीरे-धीरे लहू से सींच गई ।— % &-
मेरी रेत सी आरज़ुओं में नमी बढ़ गई,
तेरी आ जाने से एहसासों की एक झड़ी सी लग गई,
मेरे हर खयाल में तू ऐसी सुगंधित महक लाई ,
जैसे पवित्र गंगा हिम पर बहती चली आई।
दरगाहों पर भी तेरा चर्चा ,
तू ही मंदिरों की पुकार ,
तू ही गिरजाघरों की प्रार्थना ,
तुझ ही से मस्जिद की अज़ान ।
तुम ही मेरी खामोशी का हसीन राज़ ,
तुम ही मेरी सन्नाटेदार आवाज़ ,
मेरे ख्वाबों के शहर की सबसे सुंदर परी हो तुम ,
उस ईश्वर के अतुलनीय उपवन की आकर्षक कली हो तुम।
उस खालिक की अफज़ल कल्पना हो तुम,
मेरे अरमानों से सजे मेघों की अनमोल वर्षा हो तुम ,
तेरे ही सजदे में सर झुकाता हूं ,
मोहब्बत बेशुमार है पर तुझे खोने से घबराता हूं ।
हर तन्हाई में तेरे ही प्यार के नगमे गाऊंगा ,
मैं तुझसे छुप छुप कर तेरी आंखों से शबनम चुराऊँगा,
अपने इस दीवाने दिल को बरकत से धड़काना,
मैं एक दिन बस इसी में समाने आ जाऊंगा ।— % &-
उन चाबुक सी अदाओं ने मदहोश कर रखा था हमें ,
अब कितना बताएं इतना दीवाना कर रखा था हमें ,
आपकी इन आँखों के नशीले सागर में कईयों ने कश्तियां तैराई हैं ,
फिर क्यों आसुओं का जाम पिला पिला कर ही डुबा दिया हमें ।— % &-
सहस्त्र कर्मठ सितारे इस कलयुग में जन्मे,
जाने कितने ही मशहूर हुए और कितने ही चमके,
पर आबाद हुआ वह एक जियाला ,जिसकी जवानी भी दो पल की मेहमान थी,
फना हुआ वह वतन पे काफिर सौपीं जिसे अब आजादी की कमान थी ।
उज्जवल मस्तक तेज धारी ,
आंखों में इरादे लेकर आया था,
उम्मीदों की शिला पर चढ़कर ,
वह आजादी की नीव बिछाने आया था ।
पौराणिक और नूतन ग्रंथों का ज्ञाता,
कुछ बहरों को सुनना सिखा रहा था,
वह सजी अदालत की महफिल में बम गिराकर ,
कुछ बर्बर फिरंगीओं की समाधि सजा रहा था ।
विध्वंसक वीर बलशाली सिख,
अंगारों को जला सिखा रहा था,
सवा सौ दिन की भूख जुटाकर,
सहनशीलता का पाठ पढ़ा रहा था।
भगत ,बिस्मिल ,बोस ,आजाद जिनका धर्म भी क्रांति है
यह पाक पुनीत सांसे जाने कितनों की समाधि है,
प्रफुल्लित होगा हर एक अभीत जब जब यह तिरंगा लहराएगा,
आबाद रहेगा वतन हमारा जब तक यह वतनपरस्ती के नग्मे गाएगा।
ऐ मेरे स्वावलंबी स्वदेश की संतानों,
प्रकाश जरा इस कवि की गुहार पर डालो
व्यर्थ ना करना इस कुर्बानी को जो तुम्हें मुफ्त में आजादी थमा गया,
अपनी हर धड़कन में बसा लो इस नाम को जो तुम्हें कर्ज में जवानी सौंप गया ।— % &-
होली
समाप्त हुई प्रतीक्षा अब एक नर मानव की ,
आई हर नस नस में समाने बहार सुगंधित और मोहित सी,
दिवाकर भी अब सोच रहा है जल्द वह आकाश में छा जाए ,
कुदरत भी हैरान हो ऐसा हर्षित समा अब छा जाए ।
नीला आसमान शर्मा के मुस्कुरा रहा है ,
सतरंगी इंद्रधनुष भी अपनी हल्की सी झलक दिखला रहा है,
आज पावन नदियों में अमृत समा जाएगा ,
बच के रहना आज सभी बादल भी भिगोने आएगा ।
पवन मे एक अनोखी मिठास सी उभरकर आई ,
चिड़िया भी उन्मुक्त गगन में झूमने आई,
लहरों का सुरमई संदेश सुन लो ,
यह भी गगन को चूमने आई ।
मां ने सबकी कुछ पकवान बनाएं ,
कुछ गुजिया कुछ बर्फी कुछ लड्डू घर आए ,
कुछ कुछ बच्चों ने भी गुलाल उड़ाए ,
और कुछ मोहित पिचकारियों से स्नान कर आए ।
मेरी हरी उसकी लाल कईयों की सतरंगी ,
छबीली पिचकारियां और बाकियों की रंग बिरंगी ,
यह पुनीत पाक अवसर स्नेह अनुराग से मनाएं ,
निर्बल कमजोरों पर ना बल आजमाएं ।
तब तक होली का यह पर्व मनेगा ,
जब तक शिराओं में यह रक्त बहेगा,
सीना चौड़ा कर गौरवान्वित होगी यह भूमि ,
जब जब उल्लासित उमंगित सा यह मेला सजेगा ।।— % &-
मैं ही उन विश्वासघातिओं का वार हूँ
मैं ही सत्तावन का संघार हूं
मैं ही मंगल पांडे का विद्रोह
और मैं ही लक्ष्मीबाई का प्रहार हूं ।
मैं श्री परमहंस की शिक्षा
और विवेकानंद का शब्द रूपी बाण हूँ
मैं ही गांधी के चरखे की खादी और
मैं ही भगत आजाद की क्रांति की मशाल हूं ।
मैं फौजी आजाद हिंद फौज का
मेरी रग रग में क्रांति पनपती है
मैं उस सुभाष का भक्त हूं
जिसके नाम से नेतागिरी और क्रांति की ज्योति जलती है ।
मैं गणतंत्र विधाता के संविधान का अक्षर हूं
मैं श्री कलाम और अटल जी की सफलताओं का हमसफर हूं
मैं विश्वविख्यात सनातन धर्म की परवरिश हूं
मैं विष को चीर कर उभरा एक पावन अमृत हूं ।
यह महिमा गान मेरा अभिमान है इनमें अब कैसा विस्मय
मेरा कण कण समर्पित इस वतन को अब यही मेरा विश्वविख्यात परिचय ।— % &-
मैं ही उन विश्वासघातिओं का वार हूँ
मैं ही सत्तावन का संघार हूं
मैं ही मंगल पांडे का विद्रोह
और मैं ही लक्ष्मीबाई का प्रहार हूं ।
मैं श्री परमहंस की शिक्षा
और विवेकानंद का शब्द रूपी बाण हूँ
मैं ही गांधी के चरखे की खादी और
मैं ही भगत आजाद की क्रांति की मशाल हूं ।
मैं फौजी आजाद हिंद फौज का
मेरी रग रग में क्रांति पनपती है
मैं उस सुभाष का भक्त हूं
जिसके नाम से नेतागिरी और क्रांति की ज्योति जलती है ।
मैं गणतंत्र विधाता के संविधान का अक्षर हूं
मैं श्री कलाम और अटल जी की सफलताओं का हमसफर हूं
मैं विश्वविख्यात सनातन धर्म की परवरिश हूं
मैं विष को चीर कर उभरा एक पावन अमृत हूं ।
यह महिमा गान मेरा अभिमान है इनमें अब कैसा विस्मय
मेरा कण कण समर्पित इस वतन को अब यही मेरा विश्वविख्यात परिचय ।— % &-
मेरा परिचय
मैं तेज प्रतापी नीलकंठ शंकर के डमरू की आवाज हूं
मै रणचंडी के क्रोध की ज्वाला का आगाज हूं
मैं परम पिता विश्व रचयिता ब्रह्मा का एक छोटा सा अंश हूं
मैं वीर और वीरांगनाओं से सजे इस भारतवर्ष का वंश हूं ।
मैं रघुवर की प्रत्यंचा की टंकार हूं ,
मैं कुंती पुत्र के गांडीव की ललकार हूं ,
मैं ही यदुनंदन माखन चोर की मुस्कान ,
मैं ही सीता की चूड़ामणि का अभिमान हूं ।
मैं चाणक्य के संपूर्ण विद्या का सार हूं ,
मैं ही आर्यभट्ट के ज्ञान और खोज का प्रमाण हूं ,
मैं ही हूं रक्षक पोरस की तलवार ,
मैं ही चंद्रगुप्त का विकीर्ण विशाल संसार ।
मैं पौराणिक वेदों का पवित्र ज्ञान हूं
मैं संप्रदायिक उपनिषदों से उभरता विद्वान हूं
मैं पूजन करता रामायण का मेरी रग रग में बसता एक एक कांड है
मैं अपने आप में देवता का अवतार मुझ में समाया संपूर्ण ब्रह्मांड है।
मैं पृथ्वीराज की प्रचंड वीरता का प्रतीक हूं
मैं मराठों का यश और उनकी विश्व प्रसिद्ध जीत हूं
मैं राजपूताना वंश के बुलंद किलो की ढाल हूँ
मैं शिवाजी और महाराणा प्रताप की भूमि में जन्मा एक साहसी लाल हूँ ।
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