मत कहना कि हर बार क्यों कलम नहीं चलती,
कभी कभी ये कोरा कागज़ भी, कहानियाँ सुनाता है.-
लिखता हूँ
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मत कहना कि हर बार क्यों कलम नहीं चलती,
कभी कभी ये कोरा कागज़ भी, कहानियाँ सुनाता है.-
थोड़ा वक्त खुद के लिए भी निकाला करो
कभी उलझे हुए मसलों को,
थोड़ा सुलझाया करो.
कहो खुद से कि सब अच्छा है
थोड़ा चुप रहकर, सब बोल जाया करो.
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कलम जब चलने लगे तो शब्दों पर लगाम भी लगाया करो.
ज्यादा दिल के बहकावे में रहना भी अच्छी बात नहीं.-
हद होती है तब, जब डर खूब डराने लगता है.
हद होती है तब, जब दु:ख भी मुस्काने लगता है.
आंखों के आंसू कहीं ठहर, जब इंतज़ार करवाते हैं.
मंद हवाओं में भी जब, सारे अपने उड़ जाते हैं.
फिर भी चलते हैं, गिरते हैं
और उठकर दौड़ लगाते हैं.
हद होती है तब, जब ये सब भी सपना लगने लगता है.-
पैसे हों तो फूल बंजर में भी खिल जाये,
चुनाव हारे हो या जीते हो
फिर भी सरकार बन जाये.
कौन कहता है कि सब कुछ नहीं बिकता,
एक बार विधायकों की बोली लगाकर तो देखो-