Aditya Kumar   (अनाहत शब्द)
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Shayar ,Poet, BTech Student
From Pratap Vihar,Ghaziabad
Joined 21 October 2018


Shayar ,Poet, BTech Student
From Pratap Vihar,Ghaziabad
Joined 21 October 2018
12 JUL AT 13:35

अच्छा है ज़िंदगी किताब नहीं है,
इसे लिखने वाला कोई इंसान नहीं है।

बुरे वक़्त के पन्ने यूँ ही जला देते,
हर दुख,हर दर्द हवा में उड़ा देते।
आगे का किस्सा पहले जान जाते,
तो आज की हँसी यूँ ही गँवा आते।

अच्छा है ज़िंदगी किताब नहीं है,
इसे लिखने वाला कोई इंसान नहीं है।

सपनों में उलझकर सपने ही भूल जाते,
बस जीते जी एक जिंदा खिलौना बन जाते।
जो चलता है, मगर मंज़िल से दूर है,
जो मुस्कुराता है,पर अंदर से चूर है।

अच्छा है ज़िंदगी किताब नहीं है,
इसे लिखने वाला कोई इंसान नहीं है।

जीने का मतलब ही भूल जाते,
हर एक पल को जीना भूल जाते।
एक ही दिन में पूरी कहानी पढ़ जाते,
अच्छा है ज़िंदगी किताब नहीं है।

अच्छा है ज़िंदगी किताब नहीं है,
इसे लिखने वाला कोई इंसान नहीं है।

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11 MAY AT 13:37

तेरे मिलने के वादे पर यक़ीन है मुझे,
मगर तू रास्ते में रुकता बहुत है।
कभी यादों की धूप में ठहर जाता है,
कभी बीते लम्हों में उलझता बहुत है।

कभी लगता है, तू बस एक क़दम दूर है,
फिर लगता है, जैसे तू एक उम्र दूर है।
तेरे इरादों की चाल भी अजीब है,
मुझे पाने की चाह है, मगर डरता बहुत है।

तू मेरी दुआओं की आख़िरी पंक्ति है,
पर तुझे पढ़ने में वक़्त लगता बहुत है।
तेरे मिलने के वादे पर यक़ीन है मुझे,
मगर तू रास्ते में रुकता बहुत है।

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7 MAY AT 16:39

सीमा उस पार से जो आँख उठी,
अब वो आँख नहीं, राख बनेगी।
भारत अब वो भारत नहीं,
जो चुप रहे  — अब आग बनेगी।

ना माफी, ना संधि, ना संवाद अब,
हर वार का जबाव तैयार है।
जो शांति की भाषा समझ न सके,
शस्त्र का जवाब तैयार है।

जो खेल रहा है आग से अब,
उसकी राख उड़ानी बाकी है।
"ऑपरेशन सिंदूर" की जय हो,
अब "विजय पूर्ण विराम" बाकी है।

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4 MAY AT 14:09

मैं और मेरे शब्द —
ना कोई सुनने वाला,
ना कोई समझने वाला.....
कभी काग़ज़ पर बिखरते हैं,
कभी खामोशी में घुल जाते हैं.....

मैं और मेरे शब्द —
दो मुसाफ़िर हैं अनजान राहों के,
जहाँ मंज़िलों से ज़्यादा सफ़र की तलब है.....
कभी मैं लफ्ज़ों में बहता हूँ,
कभी लफ्ज़ मुझमें डूबते हैं.....

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27 APR AT 17:14

मैं ठहर गया पहाड़ होकर,
तुम बहती रहीं नदी जैसी।
मैंने सँजोया हर एक कतरा,
तुम बहती चलीं सदी जैसी।

मैंने सूरज को ओढ़ लिया,
तुमने चाँदनी बिखेर दी।
मैंने धैर्य से मौन रखा,
तुमने लहरों की तान छेड़ दी।

मैं ऊँचाइयों में घुलता रहा,
तुम घाटियों से मिलती रहीं।
मैंने सहेजे बीते पल,
तुम बस बहती चलती रहीं।


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12 APR AT 15:15

अंजनी सुत, वायु के तात,
शक्ति अपार, रूप विराट .....
राम भक्त, हे संकट मोचन,
तेरी शक्ति की कोई नहीं काट .....

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5 APR AT 13:24

एक लिफ़ाफ़ा लेते आना,
उसमें बीते पल भर दूँगा।
थोड़ी धूप पुराने दिनों की,
कुछ चिट्ठियाँ अधूरी रख दूँगा।

एक लिफ़ाफ़ा लेते आना,
उसमें थोड़ी मोहब्बत भर दूँगा।
जो बेआवाज़ चले आए थे मन तक,
ऐसे कुछ जज़्बात रख दूँगा l

एक लिफ़ाफ़ा लेते आना,
और जाने के बाद खोलना l
शायद तुम्हें मेरा अक्स मिले,
कोई जाना - पहचाना शख़्स मिले।

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30 MAR AT 11:51

बता कौन-सी किताब लिखूँ, जिसमें तेरा ख्वाब लिखूँ,
हर एक पन्ने पर तेरी छवि,हर अक्षर में गुलाब लिखूँ।
मौन सन्नाटों की भाषा में,तेरे मेरे संवाद लिखूँ,
चाँद-सितारे स्याही बनें,हर पल का मैं सार लिखूं
कुछ सत्य लिखूँ,कुछ भ्रम लिखूं,बातें तेरी चार लिखूँ।
कभी लिखूँ इतिहास तेरा,कभी अपना भूगोल बनाऊँ,
बता किस रंग की श्याही हो, कौन से शब्द चुनूं

बता कौन सी किताब लिखूं.................

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16 MAR AT 21:35

भीड़ में अनगिनत चेहरे,हर एक पर एक नई कहानी,
कुछ हँसी में डूबे लम्हे,कुछ आँखों में छिपी हैरानी।
कहीं छिपा दिखता दर्द,कहीं आँखों में सपनों का भार,
कोई तलाश में मंज़िल के,तो कोई खो चुका संसार।

अनजाने रास्तों पर चलते,मिलते हैं ये अज्ञात चेहरे,
हर एक के पीछे एक जीवन,अनकही दास्ताँ को घेरे।
कोई बिछड़ा है अपनों से,कोई अपनों की तलाश में,
कोई जी रहा सपनों में,कोई उलझा किसी जाल में।

इन चेहरों की भीड़ में,हम भी एक अज्ञात चेहरा,
अपनी पहचान की खोज में,ढूंढ रहे अपना चेहरा

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14 MAR AT 8:46

बज उठी फिर से बांसुरिया,बिखर गए रंग हजार
सज गई प्रीत की गलियाँ,आया होली का त्योहार।
फागुन की बयार चली,संग लायी खुशहाली,
रंगों में घुल-मिल गए सब,ये होली बड़ी निराली।

बचपन के दिन याद आए,जब गली-गली दौड़ा करते
पिचकारी हाथ में थामे,रंगों से खेला करते।
माँ के हाथों की गुजिया,अब भी होठों पर बसती है
गुझिया,ठंडाई,संग में हँसी,होली सुगंधित लगती है।

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