मैं ठहर गया पहाड़ होकर,
तुम बहती रहीं नदी जैसी।
मैंने सँजोया हर एक कतरा,
तुम बहती चलीं सदी जैसी।
मैंने सूरज को ओढ़ लिया,
तुमने चाँदनी बिखेर दी।
मैंने धैर्य से मौन रखा,
तुमने लहरों की तान छेड़ दी।
मैं ऊँचाइयों में घुलता रहा,
तुम घाटियों से मिलती रहीं।
मैंने सहेजे बीते पल,
तुम बस बहती चलती रहीं।
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From Pratap Vihar,Ghaziabad
अंजनी सुत, वायु के तात,
शक्ति अपार, रूप विराट .....
राम भक्त, हे संकट मोचन,
तेरी शक्ति की कोई नहीं काट .....-
एक लिफ़ाफ़ा लेते आना,
उसमें बीते पल भर दूँगा।
थोड़ी धूप पुराने दिनों की,
कुछ चिट्ठियाँ अधूरी रख दूँगा।
एक लिफ़ाफ़ा लेते आना,
उसमें थोड़ी मोहब्बत भर दूँगा।
जो बेआवाज़ चले आए थे मन तक,
ऐसे कुछ जज़्बात रख दूँगा l
एक लिफ़ाफ़ा लेते आना,
और जाने के बाद खोलना l
शायद तुम्हें मेरा अक्स मिले,
कोई जाना - पहचाना शख़्स मिले।-
बता कौन-सी किताब लिखूँ, जिसमें तेरा ख्वाब लिखूँ,
हर एक पन्ने पर तेरी छवि,हर अक्षर में गुलाब लिखूँ।
मौन सन्नाटों की भाषा में,तेरे मेरे संवाद लिखूँ,
चाँद-सितारे स्याही बनें,हर पल का मैं सार लिखूं
कुछ सत्य लिखूँ,कुछ भ्रम लिखूं,बातें तेरी चार लिखूँ।
कभी लिखूँ इतिहास तेरा,कभी अपना भूगोल बनाऊँ,
बता किस रंग की श्याही हो, कौन से शब्द चुनूं
बता कौन सी किताब लिखूं.................-
भीड़ में अनगिनत चेहरे,हर एक पर एक नई कहानी,
कुछ हँसी में डूबे लम्हे,कुछ आँखों में छिपी हैरानी।
कहीं छिपा दिखता दर्द,कहीं आँखों में सपनों का भार,
कोई तलाश में मंज़िल के,तो कोई खो चुका संसार।
अनजाने रास्तों पर चलते,मिलते हैं ये अज्ञात चेहरे,
हर एक के पीछे एक जीवन,अनकही दास्ताँ को घेरे।
कोई बिछड़ा है अपनों से,कोई अपनों की तलाश में,
कोई जी रहा सपनों में,कोई उलझा किसी जाल में।
इन चेहरों की भीड़ में,हम भी एक अज्ञात चेहरा,
अपनी पहचान की खोज में,ढूंढ रहे अपना चेहरा
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बज उठी फिर से बांसुरिया,बिखर गए रंग हजार
सज गई प्रीत की गलियाँ,आया होली का त्योहार।
फागुन की बयार चली,संग लायी खुशहाली,
रंगों में घुल-मिल गए सब,ये होली बड़ी निराली।
बचपन के दिन याद आए,जब गली-गली दौड़ा करते
पिचकारी हाथ में थामे,रंगों से खेला करते।
माँ के हाथों की गुजिया,अब भी होठों पर बसती है
गुझिया,ठंडाई,संग में हँसी,होली सुगंधित लगती है।-
गंगा लहराए जटाओं में,चंद्र सजे मस्तक पर।
नीलकंठ विष पीकर भी,करुणा बरसाएं निर्झर।।
डमरू की ध्वनि जब गूंजे,तांडव से सृष्टि हिल जाए।
प्रलय और सृजन के स्वामी,हर युग में आशा बन आए।।
रुद्र वही जो क्रोध में जलते,शंकर वही जो प्रेम लुटाएं।
जो भी सच्चे मन से पुकारे, महाकाल दौड़े चले आए।।
भस्म शोभित अंग हैं जिनके,त्रिशूल से सब बाधा हरते।
हर-हर महादेव की गूंज में, शिव भक्त हुंकार हैं भरते।।
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तेरी गलियों में हर कोई मुसाफिर है,
कुछ लम्हों का ही आराम है यहाँ
इतना क्यों सिखाए जा रही ऐ ज़िन्दगी...
हमें कौन सी सदियाँ गुज़ारनी है यहाँ?
मंज़िलें जो तेरी शर्तों पर मिलें,
तो फिर किसे वो राहें अपनानी है यहाँ?
इतना क्यों सिखाए जा रही ऐ ज़िन्दगी...
हमें कौन सी सदियाँ गुज़ारनी है यहाँ?
इतना क्यों सिखाए जा रही ऐ ज़िन्दगी...
हमें कौन सी सदियाँ गुज़ारनी है यहाँ?
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बातों की तेरी अब तो पड़ गई है आदत
बोलना मैं भी सीख गया, बोली तेरी इबादत-
हर हंसी को अपनाया, हर आंसू छिपा लिया,
हर मोड़ पर अपनों के लिए खुद को मिटा दिया।
हमने देखा फ़िज़ा बदलते हुए,
कुछ अपने भी अजनबी निकलते हुए।-