Aditya Chaurasia   (adii..™)
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Joined 15 February 2018


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Joined 15 February 2018
13 SEP AT 8:30

आने वाला कल, एक अनजाना सा ख़्वाब है,
जिसकी तलाश में दिल, हर पल बेताब है।
क्या होगा आगे, ये कोई नहीं जानता,
पर उम्मीद की किरण से, हर रास्ता रौशन रहता है।
🙇
- पल्यादि..™

-


12 SEP AT 19:24

Title: The First Step Isn’t Always Easy
( in caption)
🙇
- adii..™

-


9 SEP AT 18:52

कभी किसी ख़ास के लिए वक़्त निकाला करते थे हम,
अब तो बस वक़्त खुद को काटता है चुपचाप।
जब से वो जुदा हुए हैं ज़िंदगी से,
तब से घड़ी पहनना भी छोड़ दिया है हमने —
अब किसके लिए वक़्त देखना...
जब अपना ही कोई नहीं रहा "पल्यादि"..!!
🙇
- आदि..™

-


8 SEP AT 18:56

"Jeevan bhi us mod ka ped ban gaya hai,
jo ek बार तो nazar aaya,
par phir kabhi usi raaste par wapas nahi मिला।
Na uski छांव, na वो ठहराव — बस ek yaad बन कर रह गया है वो सफर।"
🙇
- adii..™

-


7 SEP AT 11:52

"ज़िंदगी उस आँगन के पेड़ सी हो गई है,
जहाँ न कोई साया, न कोई हमसफ़र बचा है।
आसपास सब खाली... बस खामोशी की छांव है,
और उस तन्हा पेड़ को अब अकेलेपन की आदत सी हो गई है।
ना कोई बात करने वाला, ना कोई सुनने वाला,
फिर भी हर रोज़ वो पेड़ खड़ा रहता है —
जैसे जीना उसकी मजबूरी नहीं, इज़्ज़त बन गई हो..."
😊
- आदि..™

-


5 SEP AT 20:29

जब कोई अपना समझने वाला नहीं बचा,
और बातों में भी अब सुकून नहीं रहा,
तो मैंने शहर बदलने का फ़ैसला कर लिया...
अब अजनबियों में खुद को ढूँढता हूँ,
कम से कम यहाँ कोई अपना झूठा दिलासा तो नहीं देता...

- आदि..™

-


2 SEP AT 7:12

"जरूरत पड़ी तो याद किया,
वरना हम कहाँ किसी को याद आते हैं,
गलती भी हमारी ही ठहरती है,
जब वो अपने फायदे में हमें भूल जाते हैं।
हम निभाते रहे दिल से हर रिश्ता,
पर शायद हम उनके लिए बस एक वक़्ती किस्सा थे...
🙃
- आदि..™

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24 AUG AT 17:58

मोहब्बत का असल मतलब तो तब समझा,
जब उसके कदमों में मिट्टी बनने का मन किया।
वो चाहे तो पहने मुझे पायल जैसी,
और चाहे तो राखे सिरहाने, सोना कह के "पल्यादि"...
❤️
- आदि..™

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16 AUG AT 18:09

हर दिन एक नए शहर में, नई उलझन के साथ,
नई शुरुआत करनी पड़ती है,
और उम्मीद और हिम्मत जवाब देते हुए...

हर सुबह एक नया शहर है, नई उलझन साथ लिए,
हिम्मत और उम्मीद ने भी अब, मौन सा है साध लिया।

टूटे हुए सपनों को फिर से, सीने से लगाना पड़ता है,
हर दिन एक नई उलझन को, अपना ठिकाना बनाना पड़ता है।

थक गई है रूह भी अब, भटकते-भटकते,
फिर भी चलना है, इसी आस में,
कि शायद कहीं, अपनी मंज़िल मिल जाए,
और ज़िंदगी की उलझनें, सुलझ जाएं।

मगर अब तो उम्मीद भी, कुछ कहने से डरती है,
और हिम्मत भी, अब जवाब देने से कतराती है।
😊
- आदि..™

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9 AUG AT 18:33

जो आज ग़लतियाँ दिखा रहे हैं,
कल वो ही साथ देने आएंगे,
हमें कोई शिकायत नहीं उनसे,
बस हम खुद को और बेहतर बनाएंगे।
😊
- आदि..™

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