इश्क की आग में हर रोज जलाते हो
जब दिल करता मोहब्बत
जब चाहा आते जाते हो
बड़े मरे फिरते थे तुम मोहब्बत की शुरुवात में
अब ना कोई कहानी, ना आंखे हमारी खूबसूरत बताते हो
कभी कुछ कहो तब तो समझूँगी मैं
तुम नही समझती
क्या तुम कभी समझाते हो?
इज्जत हूं तुम्हारी कोई रकाशा नही
जो बात बात पर उतार देते हो और उंगलियों पर नचाते हो
अब कुछ पहले जैसा नहीं होगा
ना मोहब्बत
ना मैं तुम्हे फिर से जीते जी माफ कर पाऊंगी
बड़ी मुश्किलों से निकाला है खुद को तेरे जाल से
सो कब्र मंजूर है पर तेरी बातों में नहीं आऊंगी
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