Aditi Raj   (Nuts)
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महज़ कुछ बातें हैं बस....
Joined 22 August 2017


महज़ कुछ बातें हैं बस....
Joined 22 August 2017
16 NOV 2022 AT 13:40

मेरे हमसफर

रात गुजर जाती है
Last seen देखते हुए
कभी आँखें बंद होती है
तो कभी खुली ही रह जाती है
नींद तो खो सी गई है

बातें बहुत है करनी
कुछ उन्हें हमसे
तो कुछ हमें उनसे
अनकही है पर कही सी है

इंतजार रहता है हर पल
एक संदेश का ..ताकि
किसी बहाने बात बढ़े

और इसी इंतजार में ;
मेरे हमसफर
रात गुजर सी जाती ।

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15 NOV 2022 AT 2:17

जरा सी नजदीकियां क्या बड़ी उनसे,
हम अपनों के बीच ही काफिर हो गए।

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9 FEB 2022 AT 12:56

आजकल अकेले होने का प्रचलन काफी प्रसिद्ध है।
क्या यह शत् प्रतीशत सत्य है ?
इस विषय में मेरे कुछ विचार हैं.....

हम चाहे ईश्वर को गुरु बनाए या किसी वस्तु अथवा पेड़-पौधे, वनस्पतियों
से लगाव रखें या फिर पशु-पक्षी एवं इंसान से प्रेम करें या भूतकाल को संजोए चाहे खुद से मोह ही क्यूँ ना हो !!

अकेले कोई नहीं होता...संभवतः वचन देते हैं एवं संबंध बनते हैं ।।
— % &

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9 FEB 2022 AT 10:42

खाए सो पछतावे।
ना खाए तो पछतावे।।— % &

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8 FEB 2022 AT 23:18

A secret which is like a life /home /world to her.
The feeling and thought that completes her and gives a lot of happiness which can also be referred as *Happiness of wholesome*

'What secret' ?— % &

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8 FEB 2022 AT 22:19

| यादें |

कुछ कड़वी तो कुछ मीठी,
कुछ दर्दनाक तो कुछ हसीन।
कुछ सबब दे जाती हैं,
तो कुछ जीने की नई आस ।
कुछ आँसुओं का सैलाब लाती हैं,
तो कुछ किलकारियाँ जैसी खुशी ।— % &

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18 SEP 2021 AT 4:43

I'm like a moon surrounded by parent's love like countless stars.
{WoRThiEsT GiFt }

Now I can correlate :-

• 0ur misbehaviour = (अमावस्या) painful
• Moon wandering in a cloudy sky = loneliness

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28 AUG 2021 AT 19:40

नाव फसीं बीच मझधार में,
तलाशे अब अपनी माँझी को ।

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25 AUG 2021 AT 13:07

।मुक्ति।

मकान तो खरीद लिए बहुत, मैंने
फिर भी एक घर को तरसूँ मैं।

पैसे तो बहुत कमा लिए , मैंनें
अब अपनों को तरसूँ मैं ।

मुकाम मुक्म्मल तो कर लिया , मैंने
अब खुद को तरसूँ मैं।

हर मंदिर-मंदिर भटक लिया , मैंने
फिर भी मुक्ति को तरसूँ मैं ।

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5 JUN 2021 AT 20:05

। बुरा ख्वाब ।

कई पहेलियों के बीच कहीं गुम थी
निकल नही पा रही थी ;
या...निकलना आता नहीं था ,
खुद से भाग रही थी ..या
सामना कर नहीं पा रही थी ।

अरसों बाद खुद को ख्वाब में देखा,
सच वो थी ...या
मुखौटा मैंने पहन रखा है ।
कुछ पल के लिए ...यूँ लगा
वो ख्वाब मुझे आईना दिखा गया
और मैं सिसक पड़ी ।

फिर वो "ख्वाब" आखिर में "बुरा" बन गया ।।

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