Aditi Maurya   (अदिति)
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I'm the pieces of Universe,
Living as a human for a while.
Joined 29 April 2017


I'm the pieces of Universe,
Living as a human for a while.
Joined 29 April 2017
3 AUG 2022 AT 3:05

Dear ( name retracted),
Yesterday, I went to the Nalanda top, alone to find your warmth in the cold breeze which I can feel in my ears like your breathing, in the nights we spent together.

I wish last night, your hands would be there instead of the cigarettes...you know it took me two hours to think should I smoke or should I call you....never happened before in my life. A girl who hated smoking like no one does now loves the way it goes inside her, mixed with her each breathes and calms her down as her lover does... Cigarette replaced a human, damn!!!! Well, I tried to look at the sky and find you but this time my eyes were calculating the depth of the building... I was on the edge, having a cigarette in my hand, telling myself not to smoke, but my body froze, forcing me to smoke again...


Yours,
Aditi

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29 JUL 2020 AT 9:51



" जब भी देखती हूँ मैं सूर्य को
दूर क्षितिज के किसी कोने में
ढलते हुए , तो मैं सोचती हूँ,
क्या इतना कठिन था प्रेम ,
जो हम समझ नहीं पाए ? "

(कविता अनुशीर्षक में)

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25 JUN 2020 AT 19:21

" क्या तुम आज भी वही हो?
जहां चार वर्ष पूर्व थे?
मै अब लौटना चाहती हूं,
मगर इस बार फैसला तुम्हारा होगा,
और मै विरोध नहीं करूंगी ।"

( Complete piece in caption)

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20 JUN 2020 AT 14:13

नज़्म : "खामोशियां"

खामोशियां बोलती हैं,
हर वक़्त कुछ टटोलती हैं,
कभी कुरेद देती है यादें,
तो कभी पुरानी बातें,
दिल की सरजमीं पर।
खामोशियां ज़ख्म देती हैं,
हर शोर खत्म कर देती हैं,
मुसलसल पी जाती है,
सरगम के हर सुरों को,
खामोशियां अल्फ़ाज़ चुनती है,
फिर नया एक राज़ बुनती है।
खामोशियां बोलती है,
हर वक़्त कुछ टटोलती है।।

अदिति

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12 JUN 2020 AT 11:28

हर शहर की हर गली में घूमते हैं आज भी,
जिस शहर जाते हैं तुझको, ढूंढ़ते हैं आज भी।।

सर्द होंठों पर जमा हैं लफ्ज़ अश्कों की तरह,
दिल से उसके लम्स को हम सोचते हैं आज भी।।

~ अदिति मौर्य

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10 JUN 2020 AT 14:33

स्मृतियां फिर बन रही हैं,
मेरे आत्म तट पर ,
जिसमे प्रत्यक्ष है हमारे
मध्य जन्मा प्रेम।
यह प्रेम आज भी
उतना ही अधूरा है,
जितनी मै हूं, तुम्हारे बिना।
इसलिए या तो तुम लौट आओ,
या फिर मिटा दो स्मृतियां,
हमारे प्रेम की,
क्योंंकि "मुझे जीना है"।

~ अदिति

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24 MAY 2020 AT 22:10

शीर्षक : " मै कौन हूं ? "

मै कौन हूं ? मै कौन हूं?
अनुरागी के प्रेम गीत में,
क्या मध्य सुरों की मौन हूं?

मैं वियोग से जन्मी कविता हूँ ,
मैं हूँ अभिलाषा मानव की ,
मैं अचल से बिछड़ी सरिता हूँ।

मैं वृक्ष की शीतल छाया हूँ ,
मैं हूँ झंकृत मल्हार ,
मैं कृष्ण सुदर्शन माया हूँ।

मैं आत्म - रोध की रेणु हूँ ,
मैं हूँ संगम अधरों का ,
मैं सात सुरों की वेणु हूँ।

मैं महाकाल हूँ शक्ति हूँ ,
मैं हूँ परिभाषा स्वयं की,
मैं अंतर्मन की भक्ति हूँ।

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24 MAY 2020 AT 18:55

मैं वियोग से जन्मी कविता हूँ ,
मैं हूँ अभिलाषा मानव की ,
मैं अचल से बिछड़ी सरिता हूँ।

मैं वृक्ष की शीतल छाया हूँ ,
मैं हूँ झंकृत मल्हार ,
मैं कृष्ण सुदर्शन माया हूँ।

मैं आत्म - रोध की रेणु हूँ ,
मैं हूँ संगम अधरों का ,
मैं सात सुरों की वेणु हूँ।

मैं महाकाल हूँ शक्ति हूँ ,
मैं हूँ परिभाषा स्वयं की,
मैं अंतर्मन की भक्ति हूँ।

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1 MAY 2020 AT 14:14

तुम्हारे इस पारदर्शी स्वभाव से रुष्ट,
मै आज तक तुमसे
घृणा ही तो करते आई हूं,
और करती भी क्यों ना?
क्योंकि आज तक,
तुमने कभी मेरे प्रतिबिंब को
संवारा ही नहीं , जिस प्रकार
परावार संवार देता है
कभी विधु तो कभी भानु के
प्रकाश से...

(Read the caption)

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25 APR 2020 AT 10:30

तुम्हारा प्रतिबिंब पड़ते ही
पारावार दर्पण से भी अधिक
खूबसूरत हो जाता है।
तुम वो प्रतीक्षा हो
जो दो अनुरागी रोज़ करते है
मिलकर फिर बिछड़ने को!!!

(पूर्ण रचना कैप्शन में )

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