मेरे सवालो का जबाब देने मे असक्षम
तुम
खैर छोड़ो,
" अ " मै और सक्षम तुम
लो सक्षम तुम्हारा
दहलीज तुम्हारी
लिखावट मेरी पर चीज़ तुम्हारी
असक्षम का अ मिटा रही हूँ
शब्दो मे लपेट तुमको मै लौटा रही हूँ-
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मानवता का उपहास उडा़ता मानव
खुद की जिम्मेदारी लेने से डरता , मुर्ख मानव
पीछे खडा़ परिवार भी क्या बोझ लगता है?
लाशो का टिला बन खडा है, गंगा किनारे
लाखों कि चोरी में कैसे डूबा रे मानव ?
व्यापारी मानव-
मालिक मेरे,
अगर अब चिता जले तो उस राख में बेटी ही मिले,
राजा बेटा से ही सारी कोख भरना
पुरुष प्रधान देश नही, दुनिया करना
एक एक
हर एक लड़कियों के जिस्म नोच खाओ
206 हड्डियों को 206 बार तोड़ डालो
ज़ुबान क्या है?
तुम रूह नोच डालो
लड़की शब्द अनजान बना डालो
तुम जितना चाहे खुद को बड़ा बना लो
खुदा करे तुम अपनी सारी भूख मिटा लो-
धर्म के शोर में
देश की बात कौन करता है।
भगवा और हरे की रंझ में
शहीदों की बात कौन करता है।
अमीरो के दौड़ में
गरीबों की बात कौन करता है।
लापरवाही के संदेश में
मिटते सभ्यता की परवाह कौन करता है।-
सांस...
जीवन की पहली क्रिया
हम,ना तो कभी भीतर आती हवाओं पे नियंत्रण रखते,
और ना ही बाहर जाती हवाओं का अफसोस करते,
तो फिर लोगों के आवह-जाही पे मोह कैसा???
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Jo chut gaye
aisa nahi ki wo yaar nahi,
Jo saath chale
aisa nahi ki wo yaar nahi,
Jinn se baat nahi hoti
aisa nahi ki unhe pyar nahi
Jinn se bat roz hoti
aisa nahi ki unhe pyar nhi
Yaha samaya ka takht hai
aisa koi iska akela shikaar nahi-
विपरीत
मैं विपरीत खडा़ हूँ
पीठ दिखा बेह चलने से क्या फायदा
बसंत की हवाओं के ,विपरीत खडा़ हूँ
मीठी हवा से मूँह फेरने से क्या फायदा
तुम्हारे सवालो के तर्क में डूबने के विपरीत खडा़ हूँ
जबाबो के बवंडर मे फसने से क्या फायदा
मैं तुमसे रंझ लेने विपरीत खडा़ हूँ
तुम्हरी सोच के हिसाब से ना ढलने से क्या फायदा
मैं विपरीत खडा़ हूँ
शायद इसलिए मैं बडा़ हूँ।
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