अदीत श्रीवास्तव   (अदीत ♑)
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Joined 11 May 2020


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Joined 11 May 2020

जुनू ही है इस मिजाज़ में इक तरफा
ख़ामोशी जो तकल्लुफ नहीं सुन रही
ऐसे फासलों के दरमियान जुदा हुआ
ऐसा दिल का सुकून हो यार में

चाहत का ख़ामोशी से सुर्ख होना
इश्क़ आहिस्ता से जुनू बन जाना
ज़िन्दगी का ख़ुद से जुदा हो जाना
ऐसा सुकून यार के दिल में मिलना

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इस मतलबी दुनिया में
तुमसे मतलब रखना है
खामखां ही तुझे रोज़
देखने का यही बहाना है

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काहे तू राज न खोले
आँखें न जाने क्या टटोले
ख़ामोशी तेरी चीखती बोले
क्यूं हैं गमों को तू पिरोए
खामोश निगाहें सब बोले
बस सन्नाटे का राज ना खोलें

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कुछ बीते कल को कुरेदते है..
लाखों के ख़्वाब याद भी आते है
फिर उसी सुबह का सूरज निकलते
उसी पटरी पे चढ़ के निकल जाते
अपने से बात करते करते देखो
कितना लंबा सफर तय कर आते..

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रेत फिसलती मुठ्ठी से दिखाऊं किसको,
हसीन शाम ढलती ये दिखाऊं किसको,
मुद्दतों बात फिर मोहब्बत जताऊं किसको..

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राहें खुदा ने उसकी आसां कर दी,
मांगी दुआ में उसने उम्र,
मेरे नाम वो भी आधी दे दी..

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तुम खुशियों को उजाड़ त्योहार मनाते हो
क्या बीती उसपे जिसने लाल गंवाया हो,
फर्क क्यूं पड़े तुम पे खूनी इन मसौदों के
कौन सा तेरे बोलों ने कोई अपना खोया है..
बस रंजिशो की एक स्याही लगी है
क्या बीती उसपे जिसकी पढ़ाई छूटी है,
अपनी अपनी तो सब कसीदें कसते हो
कौन सा तेरे गले से निवाला न उतरा है..

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ये आँखें मेरा बीता कल दोहरा रही है,
इन्हें देख एक मरहूम याद आ रही है..🙁

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दामन के दाग तो बहुत दिखते है,
ख़ुद को क्यूं नहीं सिखाते इंसा..
आबरू भरे बाजार में करते नीलाम
फिर आगोशी चाहे इंसानी दिमाग..

हर शब में काम ही नज़र आता है,
काम ही क्यूं करता नीलम ये इंसा..
ऐ खुदा क्यूं इतना बड़ा है काम??
आख़िर क्यूं नहीं सीखता हैं इंसा..

इंसा है ना, ये कीमत नहीं जानता
फिर पूछे ये पीर, बाबा, फॉदर से..
किस्मत की लकीरों में क्या लिखा??
फिर भी कर्मों से न सीखे ये इंसा..!!

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कैसी माशूक हो तुम,
दिल भी लेती हो
और जाने भी नहीं देती..

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