धागे प्रीत के मुझसे आ लिपटे, इत्र में डूबे मेहके-मेहके
देदी मोहलत जीने की मुझको, जाते-जाते उसने अपना केहके
होते अगर ना तेरे हम तो, जाने कहाँ के फिर हम रहते
है क्या हक़ीक़त क्या आरज़ू है, जीना है अब बस तुझमें ही रेहके
दिलकश सज़ायें देते हैं वो फिर, हँसके-छुपके पर्दे में रेहके
दुनिया की सारी रीतें हैं झूठी, एक मेरा सच तु ही रहे बनके
एक बार मोहब्बत फिर से हुई तो, जाऊँ मैं फिर तेरे ही सदके
है ये इबादत ख़ुदा खुद गवाह है, बातों में मेरी बस तु ही झलके
तारे सारे मैं तेरे ही करदूँ, जी लूँ उमर सारी तेरे नाम करके
धागे प्रीत के मुझसे आ लिपटे, इत्र में डूबे मेहके-मेहके
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