Adi Singh joe  
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Joined 1 April 2019


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18 FEB AT 15:00

खुश होने से अब डर लगता है,
पुराने तजुर्बों का असर लगता है।
होने को तो सच हैं सारी बातें,
फरेब सा सब मगर लगता है।

ख़्यालों से भी कहीं दूर हैं अब वो दिन,
टूटता मेरा सबर लगता है।
सोचता हूँ कौन देगा मेरा साथ इतनी देर,
बहुत लंबा ये सफ़र लगता है।

ज़ोर से थाम लेता हूँ अपना दिल,
कुछ खुशनुमा सा अगर लगता है।
खौफज़दा इतना है इंसाँ हालात से,
उसका दिया अमृत प्याला भी ज़हर लगता है।

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3 JAN AT 12:41

दिन बंजर कोई रात भी आबाद नही है
हैरत ये है की तुम्हे कुछ याद नही है

तुम्हारी दुआओं में कोई तो रहता होगा
इस हताश दिल की अब कोई मुराद नही है

बिखर्ने को है इश्क़ मकाँ कुछ झोकों में
तेरे बाद हिम्मत की बुनियाद नही है

आँखें कब हुई थी नम कुछ ध्यान नहीं आता
अब कोई अब्र-ए-सियाह भी इतना याद नही है

जी लेते हैं सब किसी को गले लगाकर
मुझे तो सुकूँ भी तुझपे मिटने के बाद नही है

एक तरफ तेरा जहाँ जिसमे इतनी खुशीयाँ
एक मेरा खालीपन जिसमे कोई शाद नही है

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28 NOV 2023 AT 16:12

सुना बा बाबूजी के अंगुरि, दादा जी के कन्हवा
माई के अचरवा, बगीचवा के अमवा
जबसे छोड़ीके गईल बाड़ बाबु तु घरनवा

सोची-सोची ना रोहिय सुखल जाए परनवा
रोजे तु बतावत रहिय खाईल की नाही खनवा
ना होई त लौट अहिया परब पे अंगनवा
छोड़ीके गईल बाड़ बाबु तु घरनवा

सुना-सुना होत जाता तोहरे बिना कनवा
केहु ना पुकारे माई, ना सुनाता बाबूजी के तनवा
अबेर भइल गईले तोहरा, पर माने नाही मनवा
छोड़ीके गईल बाड़ बाबु तु घरनवा

घरवा के दुअरवा, गऊँवा के उ यरवा
बईठल-बईठल सोचत रहें कब छोड़ीके अईब सहरवा
बाबू तोहरे बिना नाही होई हमनी के गुजरवा
छोड़ीके गईल बाड़ बाबु तु घरनवा

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3 OCT 2023 AT 9:39

है शाम किसी और की तो रात कैसे मेरी होगी
जगा सा है एक ख़्वाब खैर सोने में कितनी देरी होगी
गमगीन होने का है मेरे पास कोई सबब नहीं
वो थी ही कब अकेली जो अब सिर्फ मेरी होगी

है ठीक यही की मुड़ जाऊँ वापस मैं अपने घर को
जब रास्ता ही है इतना ग़ैर तो मंज़िल खाक सुनहरी होगी
जाने-अनजाने अपने ज़मीर से बेवफ़ाई भी हो ही गई मुझसे
चलो बदहवासों के बज़्म में सहीं! एक नज़्म मेरी होगी

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28 JUL 2023 AT 6:52

तुम नहीं मिले, तुम्हें ढूँढता रहा फिर भी
ज़माने गुज़रे ज़माने हुए पर दिल तुमसे गूँजता रहा फिर भी

आहट से अब भी नींद खुल ही जाती है आस में
तुम कभी नहीं मिले पर मैं ख़्वाब बुनता रहा फिर भी

ज़ाहिर है कुछ वक़्त और लगेगा मिलने में तुम्हें
सब कहते रहे भूल जाऊँ, मैं पल-पल गिनता रहा फिर भी

पैमानें बदलते रहते हैं रात भर इंतज़ार में
आरज़ू में सारे दीवाने बदलते रहे, मैं मैकदें में मिलता रहा फ़िर भी

खालीते में मेरे ना तेरी तस्वीर है ना ही पता
ख्वाबों में भी तेरा चेहरा धुंधला है पर मैं आँखें मुँदता रहा फिर भी

लगा अकेले में मिलने में ऐतराज़ हो तुम्हेँ शायद
तुम भीड़ में भी नहीं मिले, मैं तुम्हेँ ढूँढता रहा फिर भी

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30 JUN 2023 AT 5:11

ख़ाली ख़लीते मे मेरे ख्वाबों के सिवा रखा क्या है
चंद मुट्ठी भर यकीन के अलावा अब बचा क्या है

वो पुरानी ख्वाइशें फ़िर आँखों में आयेंगी कैसे
मेरी नई आदतों में कुछ खासा अच्छा क्या है

चार दिवारिओं में छोड़ आया हुँ हक़ीक़त अपनी
इस नए सहर के फँसाने में जाने ऐसा नया क्या है

निकला हूँ आजमाने सारे बे-बुनियाद मख़मूरियों को
मेरा चेहरा बद-हवासि के नक़ाब में अभी सजा क्या है

ठहर के सोचने का ख़ुदको वक़्त भी कहाँ देता हूँ
ज़िंदगी के ऐसे दस्तूर में वक़्त से होता क्या है

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19 MAR 2023 AT 16:28

धागे प्रीत के मुझसे आ लिपटे, इत्र में डूबे मेहके-मेहके
देदी मोहलत जीने की मुझको, जाते-जाते उसने अपना केहके

होते अगर ना तेरे हम तो, जाने कहाँ के फिर हम रहते
है क्या हक़ीक़त क्या आरज़ू है, जीना है अब बस तुझमें ही रेहके

दिलकश सज़ायें देते हैं वो फिर, हँसके-छुपके पर्दे में रेहके
दुनिया की सारी रीतें हैं झूठी, एक मेरा सच तु ही रहे बनके

एक बार मोहब्बत फिर से हुई तो, जाऊँ मैं फिर तेरे ही सदके
है ये इबादत ख़ुदा खुद गवाह है, बातों में मेरी बस तु ही झलके

तारे सारे मैं तेरे ही करदूँ, जी लूँ उमर सारी तेरे नाम करके
धागे प्रीत के मुझसे आ लिपटे, इत्र में डूबे मेहके-मेहके

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16 FEB 2023 AT 1:48

हमारे नसीब में वही आये पीठ दिखाने वाले
सबसे अज़ीज़ दोस्त बने रहे दिल दुखाने वाले

घर की देहलीज लांगी जब मज़िल पाने को
फिर नहीं मिले वो सुकून आशियाँने वाले

करवटें बदलकर नींद कहाँ आएगी रात भर
हमे सपने भी मिले तो बेवक़्त जगानें वाले

वो मेरे करीब हैं पर मोहब्त तो उन्हें भी नहीं
फ़ना हो गये जमानें में सारे दिल लगाने वाले

एक खुश हाल वक़्त था जब सब अपनें ही थे
आज हज़ारों हैं मुझसे मुह फेर के जाने वाले

लकीरों पर अब भरोसा नहीं मुझे जरा भी
नखरे तो उनके भी वही हैं सारे ज़माने वाले

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7 FEB 2023 AT 6:12

तो वो अल्फ़ाज़ मिले ही नहीं

हक़ीकत अधूरी रह गई मेरे आँखों में कैद होके
तेरे मुआफ़िक़ साज़ मिले ही नहीं

ढूँढते-ढूँढते दिल्लगी में बर्बाद हो गए हम पर
इस मर्ज़ का कोई इलाज़ मिले ही नहीं

मुस्कुरा सकें साथ सबके तेरे बिना मुंकिन् कहाँ
लोग इतने खुश्मिज़ाज मिले ही नहीं

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19 JAN 2023 AT 13:04

तुमसे इश्क़ हुआ, होना होगा
पाया कम खोया ज्यादा, सायद खोना होगा
तुम्हारी और मेरी कहानी में फ़र्क बहुत है
हक़ीक़त जुदा है, सायद होना होगा

गौरतलब देखिये किस राह पर हैं दोनो
दरिया के दो किनारे हैं, सायद होना होगा
जख्म आए हैं हिस्सों में अपने बहुत
उनकी आँखें बेहद् नम हैं, सायद रोना होगा

अपना सफ़र सारा शेहेर् के नाम हो गया
ज़िंदगी ने पूरी शाम सज़ा दी, सायद बिछौना होगा
थक गए चलते-चलते तेरे बिना अकेले
तुझतक तो अब आना नहीं मुझे, सायद सोना होगा

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