अपने आप को यूँ भी न दरबदर करिए मुसलसल चलते किस्से को मुख़्तसर करिए
थोड़े दिन की खानाबदोशी ठीक हैं मगर
किसी एक ठिकाने को अब घर करिए-
वक़्त की दीवार को
कुरेदना चाहा मैंने, बीते
दिनों के बढ़ते नाखूनों से
मैंने कुरेदा और झड़ने
लगी परत दर परत दीवार
गिरने लगे अच्छे बुरे
मेरे सारे पल और अनुभव
गिरकर फैल गए वो कमरे में
गन्दा होने लगा घर
गन्दा होने लगा वक़्त
गन्दा हो गया वर्तमान
गन्दी हो गई अच्छी दीवार।
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और अबतक
मैं बस जान पाया
हूं इतना क़ी आखिर में
इंसा को दो प्यार भरी
बाँहों से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।-
जिए जा रहें हैँ पर जूनून नहीं हैँ
नींद तो आती हैँ मगर सुकून नहीं है।।-
हार कर गिरे है,पर कब खड़े होंगे
मुरझाये हुए पल फिर कब हरे होंगे।
जाने से पहले इतना तोह सोचता
हम लोग पल पल कितना मरे होंगे।
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खास था एक समय पर अब सादा हो गया हूँ
तुम्हे खुद में से घटाकर मैं आधा हो गया हूँ।।-
डूब चुका हैँ तुम्हारी शोहरत का सिराज
उठो
अब तुम्हे नए चराग़ जलाने होंगे
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हर गुजरते दिन से साथ
महसूस होता हैँ मुझे
एक पूरा जीवन था
जो तुझ संग जी चुका हूँ मैं
❤️nss❤️-
वो चेहरे से ख़ुदा का फ़ज़ल लगती हैँ
ज़ब हँसती हैँ तोह मानो ग़ज़ल लगती है-