एक रात उलझन से किनारा हुआ
और कागज़ ने
मेरा दुख बाँट ही लिया..
जब उस आखिरी चिट्ठी से
मैने उसका नाम
काटा, लिखा..
और फिर काट ही दिया।।-
मेरी अंधेरी शाम में तेरी दिए बुझाने की कोशिश..
ओ दिए बुझाने वाले, मैं अब सूरज पर रहता हूं।।-
मंज़िल की ओर निकले हो? मेहनत,लकीर
साथ रख लो..
अकेला न लगे कहीं सफर में, कुछ तस्वीर
साथ रख लो..
रास्ता लंबा भी हो सकता है और कठिन भी,
कठिनाइयों से हार न मान लो, अपना मन धीर
साथ रख लो..
-
लगे हों लोग तुम्हें तिनके चुभाने में जब,
तुम वृहद सा कोई वृक्ष क्यों नहीं हो जाते...
घमंड करे वो अपने उल्का होने की अगर,
तुम पूरा का पूरा अन्तरिक्ष क्यों नहीं हो जाते..
- आदर्श-
लगे हों जब लोग तिनके दूब में कहीं,
तुम वृहद सा कोई वृक्ष हो जाओ...
गुरूर करे वो अपने उल्का होने की,
तुम पूरा का पूरा अन्तरिक्ष हो जाओ...-
मै ताजमहल , मुमताज़ तू मेरी
मै तेरे लिए हूं , पर तेरा कहां ?
- आदर्श-
दोबारा सोच ही लो..
ज़िन्दगी उतनी खराब है ?
जितना हम सोच बैठे हैं..-
दिल की बाते कह देनी चाहिये
पर बुरा मानने का दौर जो चला है
डर है कोई बुरा मान ही न ले..-