मेरे हिस्से का मुझे अता कर मौला
ये चार दिवारी से रिहा कर मौला
रेंग लू, चल लू या दौड़ लू
मेरा कारवां बढ़ा मौला-
सादगी का भी कयामत होता है, सूट में कमाल लाती हो
चमड़े का वो जिस्म की करीब से बहुत बदसूरत नजर आती हो-
जाने दिल की क्या मर्जी है यूं हर बार किया
टूटने वाले ख्वाबों से ही अक्सर प्यार किया-
एक पंछी है वो पिंजरे से रिहा चाहता है
खुला आसमां मिल भी गया तो कुछ नही
तुम आने वाले दिनों में देखना
बदल गया, बदला कुछ नही-
हवस-ए -जिस्म कुछ भी नही तेरे गोद में सर रख ये जहां कुछ भी नही
तेरे पहले मैं बहुत कुछ तेरे बाद मैं कुछ भी नही
वैसे मैं मैं इतना सादा भी नही की एतबार हो
साहिल में उतर कस्ती है तो तूफान कुछ भी नही-
कितने मोहब्बत में पाला गया वो लड़का
बाप की फटी जेब देख के भी भागा नही
एक लङकी की मोहब्बत में हारा हुआ वो
कई डाल पे बैठने वाले परिंदो से दोस्ती करेंगे नही-
भूख तड़पाती रही इधर घर वाले भी नाराज थे और मोहब्बत भी
फकीर समझ कोई रोटी दिया भी राजा बता झुठलाई गई वो भी-