वो मत बताना जो तुम्हे पता है!
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बीत गए जाने कितने मौसम
तुम यादों मे क़ैद ताउम्र रहोगे
मैं भोर से बैठ नदी की नाव पर
तुम्हारी राह मे घाट तकती रहूँगी
मेरे साजन तुम जब आओगे
मुझे सोलह-सिंगार किये पाओगे
तुम मेरे करीब नही हो तो क्या
मेरा तन-मन तुझमे रमता है
मैं इस नाव मे रहूँगी तब तक
जब तक तुम मुझे नदिया के
पार ससुराल नही ले जाओगे!!-
मै मुखातीब् साहीलो से अब होता नही
इंतज़ार मे अब किसी के भी मैं रहता नही!!-
ज़माने को देखकर
आप क्यों बदल जाते हैं!
इतना भी नही समझते ?
बादल छंटते ही बारिशें भी
थम जाती हैं जनाब!-
इंतज़ार इतना रहा आपका
की बेकरार रही मै शाम-ओ-शहर
अब आलम ये है की नज़र
हटती नही आपसे आठों-पहर-
ग़ाफ़िल हैं हम और वो मुत्मईन
प्यासे हैं हम और वो शहर-शहर
चूम लूँ होंठ तेरे शामो-ओ -शहर मगर
उफ्फ् ये दरख़्त और हवाएं पहर-पहर-
दिल अक्सर चाहता है भर ले तुम्हें बाहो मे
एक तुम हो की विदा होने को मिलती हो
मै ज़माने से छुपकर तुमसे मिलने आता हूँ
और तू है की मुझे सिर्फ दोपहर मे ही मिलता है-
गर मिलना हो तो समय बेहद लेकर आना
हमारे ख्वाबों से मुखातीब होने हमारे मजलिस मे
आरज़ू रखते हैं हम तुमसे भरपूर मुलाकात की
कभी रुख़्सत करने की रस्मो अदायेगी नही सोची-