दूसरों के साथ सदैव वही व्यवहार करो जो तुम स्वयं के लिए दूसरों से चाहते हो, अगर इन दोनो में भेद है तो निश्चित है कि तुम अहंकारी हो, और तुम्हारा संपूर्ण विनाश निश्चित है, और मजे की बात ये है तुम्हें इसका आभास भी नहीं होगा ये हुआ कब...
कुछ कहना हो उनको तो जुबां नहीं चलती है बस केवल निगाहों से ही गज़ल बहती है, किताबों को पढ़ के क्या समझोगे तुम निगाहों से निगाहों की भाषा ही अलग होती है।
कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है की कुछ लोग धन के अभाव में उचित चिकित्सा न दे पाने के कारण अपने परिजन को खो देते हैं, उसके बाद अपने उसी परिजन की तेरहवीं में सबको भोजन कराने के लिए ब्याज पर धन लेना पड़ता है।
किसी की सहायता करने के बाद भूल जाइए की आपने किसी की मदद की, अगर कोई अपेक्षा करोगे तो वही आपके दुख का कारण बनेगा, परमात्मा ने जैसे उसकी सहायता के लिए तुम्हें भेजा था, ऐसे ही तुम्हारी सहायता के लिए किसी और को भेजेगा।