कुछ इस कदर बियाबान ज़िंदगी में
हस्ते चेहरे लौट आये
हम छुपा चुके थे जो क़लम
वो फ़िरसे निकाल लाए
इश्क़, ख़ुशहाली, वफ़ा या दगा क्या लिखूँ
जिन्हें अपना माना था एक उम्र के लिए
वो पराये निकले
और पराये जो रहे उम्र भर
वो वक़्त जान से प्यारे निकले ॥-
अब तो ख़ाली हुआ दिल
ख़त्म सारे लफ़्ज़ हो गए
जितना चाहा उतना मिला नही
बदले में कितने शेर मर गए
चलो अब विदा लेता हूँ इस
लिखने लिखाने की आदत से
बरसों से अधूरे थे
मान लिया हम अधूरे ही रहे ॥-
जिसको जैसा पसंद आऊँ वो वैसा रखे मुझे
दोस्त, भाई, आशिक़ और दुश्मन सब अच्छा हूँ मै ॥-
व्यर्थ जग़ में आना रहा
माँ बाप के सपने
प्यार हर माशूक़ से अधूरा रहा
मै यूँ ही नही सबसे पीछे रहा
मेरी क़िस्मत में उसका सिक्का खोटा
मेरी ज़िंदगी में मेहनत का खाँचा अधूरा रहा
कुछ क़रम ऐसे किए नही
मेरे भाई का मुझपर ग़ुरूर अधूरा रहा
मै कितना भी कोशिश करलूँ पार पहोंचने की
मेरा सफ़र हमेशा अधूरा रहा ॥-
इज़्ज़त करते है बस
दोस्त कुछ उमर का लिहाज़ करके
मुझमें प्यार करने लायक़
ऐसा कुछ भी नही ॥-
बाल पक गए है
घरवाले अभी भी निकम्मा समझते है
ऐ मालिक मुझे दिल रिझाने का
हुनर क्यूँ नहीं देकर भेजा ॥-
लीला है प्रभू की
दिन में खुलके हसने वाला इंसान
अक्सर रात को अकेले में सराहना गीला करता है ॥-