ख़ुद को पहचानने का हुनर रख ग़ालिब
कर यकीं, आईने भी झूठ बोला करते हैं-
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किसी से मिल जाते हैं दिल
किसी से, दिल नहीं मिलते
मौसम के जैसे हों वादे अगर
मुसलसल, गुल नहीं खिलते
दिलों के फलसफे हैं मुर्शिद
निभाने को निभ जाते हैं..
" सात जन्म"
नहीं तो ये रिश्ते..
"सात दिन " नहीं चलते..-
गिले शिकवे भी ना, कितने अजीब होते हैं
उनसे ही होते हैं, जो दिल के करीब होते हैं
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सयानों की दुनियाँ में
मासूम.... बनके रहो
क्यूँ बनना औरों जैसा
जैसे हो, बस वेसे रहो
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कितना अजीब है ना..
आज में जीने वाला कल की परवाह नहीं करता
और..
कल में जीने वाला, आज में सुकून तलाशता है-
कसमे वादों की जी हजूरी नहीं इश्क़
वफ़ाएं नहीं, तो क्या ज़रूरी है इश्क़ ?-
हुआ जो इश्क़, यकीनन ठहर जाएगा
वर्ना, रेत सा हाथों से फिसल जाएगा
क्यों बेवजह फिक्र करता है, रे ग़ालिब
रहेंगी ये गज़लें, किरदार बदल जाएगा-
नहीं गवारा, यूँ बन के तसव्वुर
मुसलसल मिरे ख़यालों में रहो
है तमन्ना, इस दिल के करीब
हर लम्हा नजर के सामने रहो-