अब शायद वो पोस्ट बॉक्स खाली ही
पड़ा रहता होगा!
आज जज़्बात भी डिजिटल हो गई है,
इस शताब्दी की तरह।-
यह जो हल्की हल्की मुस्कुराहट चेहरे पर बिन
बताए आ जाती हैं!
क्या कुछ बदला हुआ सा है आजकल!
या खुमार मौसम का है!
या फ़िर जिंदगी की सफ़र में तहज़ीब
मुझको सीखा दिया हैं, या फिर
मुझे तुम्हारी नज़र की चमक रौशन कर गई है।
यूं तो मैं प्यार नहीं करती तुमसे,
फिर भी तुम्हारी एक जिक्र से जैसे सावन
बरसने लगती है।
मैं भीग भी जाऊं और प्यासी ही रह जाऊ!
यह क्या आग है या पानी है!
कशमकश कुछ भी तो नहीं, फिर भी
बहुत कुछ कशमकश है ज़िन्दगी में।
आसान तो बहुत हैं ज़िन्दगी,
फिर भी, पता नहीं हम क्यों इतनी उलझें हूए है।-
मैंने ढुंढी थी वो चिट्ठी या तुम्हारी
पता नहीं कहां सम्हाले रखा है उन्हें
दिल की दराज में तो नहीं,
चाबी तो दो ज़रा, भीतर आना है।-
सीने में छुपे उस दर्द को
कोई समझ लें तो क्या बात होती।
किसी अपने का हाथ, इस हाथ में होती
तो शायद यह तन्हाई, कुछ कम तन्हा होती।
कुछ ख्वाहिशें जो अब दफ़न है
यहां, इसी दिल की भीतर, जो गहराई में
सुन सी पड़ी होगी!
कोई जगा तो देता, एक आवाज ही दी
होती, तो आज वो खोया हुआ मैं
जिंदा मिल जाती मुझको।-
क्या कहूं ये गिरते सांसे मेरे जिस्म को
और महका देती है,
तुम्हारी सोहबत, दिल ओ जान पिघला
रहीं हैं जैसे जाना मेरे,
तुम्हारी मासुमियत भरी अदा, मुझे
तुम्हारी और करीब ला देती है,
सुकून की बसर जैसे तुम्हारे बाहों के घेरे में है।-
रुह की एक हिस्सा वो ले जाते हैं अपने साथ,
यादों के सड़क पर छोड़ जाते हैं क़दमों के वो निशान,
धड़कन पर कोई साज़ रख जाते हैं तड़प ने के लिए
चले तो जाते हैं वो, बस यादें छोड़ जाते हैं अपने पास।
कहो! उन्हें भी कोई, के आज कोई बात नहीं है, तो न सही
बस! अपने यादें साथ ले जाएं,
जीने नहीं देती, सांस लेते ही, चुभती है बड़ी।
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हुस्न की परी, महकश है ये समा बड़ी,
कही और जाने को जी नहीं चाहता आज,
क्या बैठ जाऊं तुम्हारी पास दो घड़ी।
कहना जो भी दिल चाहे तुम्हारी,
सुकून भरें सांसें महका दूं मेरे सांसों से ही,
ज़िन्दगी की मसलों से दुर, ऐसा कुछ कह दूं!
बाहों में समा लुंगा तुम्हें, राहत जो मिले तुम्हें
वो परवाह दूं।-
क्या इंतज़ार करना!
इंतज़ार उनके लिए होता है
जहां लौटने की आस होता हो।
जहां कभी प्यार ही नहीं था!
वहा क्या उम्मीदें, क्या सपना।
जाने दिया यार तुमको
बस! अब और याद मत आना।-
क्या करु! यह कशमकश हर वार रही
दिल टूटते जातें और मैं समेटते जाऊं।
इस बार टूटेगा तो, पड़े रहने दुगी
क्या होगा, फिर से दिल जोड़कर
फिर से टूटने के लिए?-