"पिया बसंती रे काहे सताए आजा
जाने क्या जादू किया
प्यार की धुन छेड़े जिया
ओ ओ काहे सताए आजा
पिया बसंती रे काहे सताए आजा"
Songwriters:
Khilesh Sharma / Sharma /
Sultan Khan /
Ustad Sultan Khan
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पता नहीं प्यार इतनी आसान क्यों नहीं लगता?
या हमें प्यार करना ही नहीं आता।-
आंखों से नीर न बहेंगे
पलकें और इंतज़ार नहीं करेंगी
उंगलियां कांपते हुए बयां न कर पाएगी
बाते हमारी
वो जो सहेज कर रखते हो न तुम
मेरी यादों को, तुम में! वो फरियाद न कोई और कर पाएंगी।
सुबह अब चल नही पाएगी दोपहर की
धूप तक
शामें अभी खाली बितेगी, मेरी आवाज़
न करेगी और कभी बक-बक।
रातें भी विरानी में खोए रहेगी, प्रेम की आग
जल न पाएंगी और!
रोना भी चाहोगे सनम, लेकिन आंसू भी
उदासी में खुद को बहने न देगी जब
तब मैं पुछूगी तुमसे,
"मेरी जान क्या मैं याद आ रही हूं बहुत?"-
इतनी बेचैनी किस बात की!
इतनी परेशानी क्यों?
क्या हूआ है जो दिल सम्हल न रही!
भीतर से इतनी मायुस हो क्यों?
क्या रोष है कोई मन में!
कोई दर्द जो सुलगती है।
क्या राते बीत रही करबहट बदलते हुए!
क्या सुबह जला रही है, मीत!-
हाय करके चली जाती हो,
कभी एक कप चाय भी तो पिला सकती हो न!
कैसे दोस्त हो!!-
आज की सुबह ऐसी लग रही है, जैसे मयदान में, जहां हर साल पुजा होती है! वहां बांस रख दिया गया है।और हम सारे बच्चे इंतज़ार में है के कब मंडप बनाना शुरू किया जाएगा। सिर्फ है बांस की उपस्थिति से ही हम सारे दोस्तों की कल्पना की उड़ान, न जाने कहां-कहां उड़ जाते थे। तब हम बस पुजा मयदान में बैठकर ये सब बातें ही तो करते रहते। फिर एक दिन मंडप की ढांचा बनाना शुरू हो जाता है, और हम स्कूल के बाद अपने मिटिंग जगह इकट्ठा होते और कितनी बड़ी बड़ी मुद्दे बार बात करते थें।
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खो जाऊं भस्म में ऐसे, सदा शिव की बन जाऊं
कुछ इस तरह प्रेम हो जाएं, की जोगी बन जाऊं।-
वैसे तो मोहब्बत में यह जहां प्यारा प्यारा लगता है
दिलकश समा लगती है,
लेकिन क्या कहूं! उनकी बगैर जन्नत भी, तपती साहारा लगती।-
पता नहीं आख़िर हमारी ही झोली क़िस्मत ने क्यों खाली रखा।
कोई तो वज़ह बतलाते जाएं, दिल को कुछ तो आराम मिल जाए।-