Abrar Abdali  
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Joined 6 December 2017


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26 AUG AT 12:06

बच्पन कहां कुछ सोचता था
माँ से बहनों की चुगली खाई
माँ ने की बहनों की खूब कुटाई
बीस रुपये माँ से मिला इनाम
घर का लाडला भी पड़ा उपनाम
बहनों ने मुंह फुलाया
आज बहनों को उसी पैसों से
आइसक्रीम खिलाया खुद भी खाया

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19 DEC 2021 AT 20:52

सांवला रंग,सुराही गर्दन, लब पंखुड़ी, गुलाबी गाल
अदाएं ज़ालिम , रेशमी गेसू है बड़ी मस्तानी चाल

झील सी गहरी आँखें , नफ़ीस नक़्श-ओ-निगार
फिज़ा महक उठे जब निकले कर के वह सिंगार

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20 MAR 2021 AT 20:22

ज़िन्दगी में ग़म है
ग़म में दर्द है
दर्द में मज़े हैं
मज़े में हम हैं
मगर ये बे-दर्द ख़ुशियां
ना जाने कहां से आती हैं
एक दो पल के लिए
ग़मों के मज़े लूटने

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22 JAN 2019 AT 7:44

मैं ने कहा तुम बहुत खूबसूरत लगती हो
उसने कहा तुम्हारी नज़रों का जवाब नहीं

मैं ने कहा तुम्हारी आँखों से मय छलकती है
उसने कहा मेरे आँखों में आँसू हैं शराब नहीं

मैं ने कहा तुम हर रोज़ मेरे खाबों में आती हो
उसने कहा हवस है ज़ेहन में कोई ख़्वाब नहीं

मैं ने कहा तुम्हारे लिए चाँद तारे तोड़ लाऊंगा
उसने कहा तम्हारे मज़ाक़ का कोई जवाब नहीं

उसने कहा कब तक मेरा साथ निभाओगे
मैं ने कहा मौत तक और कोई मेरा ख़्वाब नहीं

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19 DEC 2021 AT 19:11

मैं ने खुद को ही अकेला कर लिया
आज चाँद से भी झगड़ा कर लिया

रात भी काली चादर ओढ़े सो गई
सूरज ने भी रातों में पर्दा कर लिया

हिज्र में जीना तो यूँ ही मुहाल था
यादों के रंग को भी गहरा कर लिया

अब यूँही खाली बैठे हम किया करें
तेरी याद में आँखों को दरया कर लिया

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4 NOV 2021 AT 9:16

दिल ना दुखाना तुम किसी का इस दिवाली में
दुश्मन के भी गले लग जाना तुम इस दीवाली में

खुशियाँ ही खुशियाँ बरसे सब के घर आंगन में
गरीब पड़ोसी को पर भूल मत जाना इस दीवाली में

सब के घर में हमेशा बनी रहे कृपा माता लक्ष्मी की
माता पिता का आशीर्वाद भी लेना इस दीवाली में

आओ सब गले लगें. , झूमें गाऐं , खुशियाँ मनायें
हर दिल में प्रेम का जोत जलायें चलो इस दीवाली में

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24 OCT 2021 AT 8:48

कभी गुस्से में ना आया कर
ज़रा खामोश हो जाया कर

रूठ गया जो कोई अपना
खुद झुक कर मनाया कर

चाँद बादलों में भटके क्यूँ
अपने आँगन में बुलाया कर

कौन अपना है कौन पराया
रोज़ उसे मत आज़माया कर

बदन तेरा सोंधा-सोंधा महके
वतन की मट्टी से नहाया कर

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17 OCT 2021 AT 7:58

दो जून रोटी की खातिर
दफ़्तर और डेरे में कैद रहने वाले
अपने घर परिवार से दूर रहने वाले
बेबस मज़दूरों की ज़िंदगी
बस अपने इर्द गर्द की उदासी समेटे
आँखों को आँसू में डुबोये
घुट घुट कर सांस लेते हैं
आखरी सफ़र पर चलने को
तैयार बैठें हैं

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9 OCT 2021 AT 21:00

रंजेशें और बढ़ा दो के दिल लगे मेरा
झगड़े में फंसा दो के दिल लगे मेरा

दिल तोड़ने वाले मेरा नाम लेकर
तोहमतें ही लगा दो के दिल लगे मेरा

अश्क़ के दरिया में जो डूबना मुक़दर
दर्द ही और बढ़ा दो के दिल लगे मेरा

हम वह नहीं जो किसी से डर जायें
दुश्मनी ही करा दो के दिल लगे मेरा

छोड़ो ये नफ़रतें , झगड़े , मुँह फेरना
चाय पर ही बुला लो के दिल लगे मेरा

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29 AUG 2021 AT 19:13

वह मेरे पास आना चाहता है
शयेद वह उदास रहना चाहता है

सूखे शज़र पर पत्ते टिकते नहीं
पर वह मुझे आज़माना चाहता है

मुफलिसी का दौर है मेरे ख़ुदा
क्यूँ मेरे कंधे सर रखना चाहता है

कैसे तोड़ दूँ मैं उसकी उम्मीदेँ
जो मेरा दर्द बाँटना चाहता है

वह आ ही चला है अब घर मेरे
वह मुझे खूब रुलाना चाहता है

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