ज़िन्दगी में ग़म है
ग़म में दर्द है
दर्द में मज़े हैं
मज़े में हम हैं
मगर ये बे-दर्द ख़ुशियां
ना जाने कहां से आती हैं
एक दो पल के लिए
ग़मों के मज़े लूटने-
जो सुना वो भी लिखा
जो न समझ सका उसे माशूक़ जाना
जो समझ गया उसी से इश्क़ किया
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सांवला रंग,सुराही गर्दन, लब पंखुड़ी, गुलाबी गाल
अदाएं ज़ालिम , रेशमी गेसू है बड़ी मस्तानी चाल
झील सी गहरी आँखें , नफ़ीस नक़्श-ओ-निगार
फिज़ा महक उठे जब निकले कर के वह सिंगार-
मैं ने खुद को ही अकेला कर लिया
आज चाँद से भी झगड़ा कर लिया
रात भी काली चादर ओढ़े सो गई
सूरज ने भी रातों में पर्दा कर लिया
हिज्र में जीना तो यूँ ही मुहाल था
यादों के रंग को भी गहरा कर लिया
अब यूँही खाली बैठे हम किया करें
तेरी याद में आँखों को दरया कर लिया-
दिल ना दुखाना तुम किसी का इस दिवाली में
दुश्मन के भी गले लग जाना तुम इस दीवाली में
खुशियाँ ही खुशियाँ बरसे सब के घर आंगन में
गरीब पड़ोसी को पर भूल मत जाना इस दीवाली में
सब के घर में हमेशा बनी रहे कृपा माता लक्ष्मी की
माता पिता का आशीर्वाद भी लेना इस दीवाली में
आओ सब गले लगें. , झूमें गाऐं , खुशियाँ मनायें
हर दिल में प्रेम का जोत जलायें चलो इस दीवाली में-
कभी गुस्से में ना आया कर
ज़रा खामोश हो जाया कर
रूठ गया जो कोई अपना
खुद झुक कर मनाया कर
चाँद बादलों में भटके क्यूँ
अपने आँगन में बुलाया कर
कौन अपना है कौन पराया
रोज़ उसे मत आज़माया कर
बदन तेरा सोंधा-सोंधा महके
वतन की मट्टी से नहाया कर-
दो जून रोटी की खातिर
दफ़्तर और डेरे में कैद रहने वाले
अपने घर परिवार से दूर रहने वाले
बेबस मज़दूरों की ज़िंदगी
बस अपने इर्द गर्द की उदासी समेटे
आँखों को आँसू में डुबोये
घुट घुट कर सांस लेते हैं
आखरी सफ़र पर चलने को
तैयार बैठें हैं-
रंजेशें और बढ़ा दो के दिल लगे मेरा
झगड़े में फंसा दो के दिल लगे मेरा
दिल तोड़ने वाले मेरा नाम लेकर
तोहमतें ही लगा दो के दिल लगे मेरा
अश्क़ के दरिया में जो डूबना मुक़दर
दर्द ही और बढ़ा दो के दिल लगे मेरा
हम वह नहीं जो किसी से डर जायें
दुश्मनी ही करा दो के दिल लगे मेरा
छोड़ो ये नफ़रतें , झगड़े , मुँह फेरना
चाय पर ही बुला लो के दिल लगे मेरा-
वह मेरे पास आना चाहता है
शयेद वह उदास रहना चाहता है
सूखे शज़र पर पत्ते टिकते नहीं
पर वह मुझे आज़माना चाहता है
मुफलिसी का दौर है मेरे ख़ुदा
क्यूँ मेरे कंधे सर रखना चाहता है
कैसे तोड़ दूँ मैं उसकी उम्मीदेँ
जो मेरा दर्द बाँटना चाहता है
वह आ ही चला है अब घर मेरे
वह मुझे खूब रुलाना चाहता है-
हुआ है प्यार
शादी का त्योहार
नटखट बच्चे
लालन पोषण
सुबह की चाय
झाड़ू बर्तन
खाना पकाने का झंझट
कुछ दिन अच्छे
फिर रोज़ के झगड़े
सास ननद से तकरार
नौकरानी सा हाल
मायके की याद
हाय रे प्यार
जीना बेकार-
माफ़ करना मुझे
कियूं ऐसा हो गया हूँ मैं
क्यों रोता हूँ
किसी का चेहरा देख कर
कियूं उस पर तंज़ कसता हूँ
वह कौन है मेरा
जितना भूलना चाहता हूँ उसे
उतना ही ज़ख़्म बन कर वह टीस देता है
मेरे ज़ेहन को
जब भी देखता हूँ उसे बस आँखें भीग जाती है
दिल तेज़ धड़कता है
मन गुस्से से भर जता है
मगर जब वह मेरी आँखों से दूर होता है
तो लगता है कि वह यहीं कहीं आस पास है
मेरे दिल में बसा
अपनों की तरह
मेरी हर कही सच्ची झूठी बातों पर
ठीक है - ठीक है कहता हुआ-