तू ये समझती है तुझसे रूठा हुआ हूं मैं
तेरी खुशी के लिए तुझसे दूर हुआ हूं मैं-
ना अपमान का भय
मैं तू ही हो गया हूं तुझसे मिलने के बाद
कोई मुझे देखता नहीं तुझे देखने के बाद-
ताल्लुक़ ख़त्म है तो किस्सा भी ख़त्म करो
मिलती हो तो मुस्कुराकर क्यों देखती हो-
मोहब्बत को जरूरी काम लिख दूं क्या
कोई पूछे तो तेरा नाम लिख दूं क्या ?-
बहुत खुश ना हुआ कीजिए जो लोग कहें
तुमसे प्यार और तुम्हारी परवाह करते हैं
असल सवाल ये कीजिए "कब तक ?"
लोग बदलते हैं यहां मौसम की तरह-
मैंने कहा ए वक्त
तू मेरे ज़ख़्म भर देना
वक्त ने कहा हँसकर
ज़ख़्म भले मैं भर दूँ
पर निशान रह जाएँगे— % &-
ख़ुद में ही सिमटा हुआ सा मैं
अथाह अनन्त शून्य मेरा हृदय
जिसमें आती रही अनगिनत
स्वार्थ साधिनी बादलियाँ
अवलम्ब लेकर मेरा जो
साधती रहीं स्वत्व
तब हुआ एक दिन आगमन तुम्हारा
सहस्र चंचल चपल दामिनियों सा
सन्निपात किया हृदय को चीरता
कि हाहाकार मचा बादलियों में
और हृदय मेरा रिक्त हो सका
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ख़ुद में ही सिमटा हुआ सा मैं
अथाह अनन्त शून्य मेरा हृदय
जिसमें आती रही अनगिनत
स्वार्थ साधिनी बादलियाँ
अवलम्ब लेकर मेरा जो
साधती रहीं स्वत्व
तब हुआ एक दिन आगमन तुम्हारा
सहस्र चंचल चपल दामिनियों सा
सन्निपात किया हृदय को चीरता
कि हाहाकार मचा बादलियों में
और हृदय मेरा रिक्त हो सका
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तू है किसी और की हम भी होंगे किसी और के
जोर कोई चलता ना आगे क़िस्मत के जोर के
तेरी दहलीज़ से ठुकराये गए हम तो जाएं कहाँ
टूटे हुए आशिक़ नहीं रहते फ़िर किसी ठौर के
याद आ गये वो पल अपनी मुहब्बत के दौर के
मोती से झर झर बहने लगे आँखों की कौर से
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चुरा लूँगा दिल तुम्हारा, तुम्हें बेकरार कर दूँगा
जो नफ़रत है तेरी आँखों में उसे प्यार कर दूँगा
इश्क़ मुकम्मल हो ना हो मेरा ना सही
नए आशिक़ों को तो होशियार कर दूँगा
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