अगर तुम्हें ग़ुरूर है ख़ुदा होने का
फिर अना है मिरा, तिरे बोझ न ढोने का
तुम इश्क़ कहो इसे, मैं नहीं मानता
जहां कोई हक़ ही नहीं साथ रोने का
और भी बहुत तरीके मिल जाते तुम्हें भी
सिर्फ़ बेवफाई रस्ता नहीं अलग होने का-
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जाने कौन सा मुझसे ऐसा काम हो गया
आज मुक़द्दस इश्क़ मेरा बदनाम हो गया
अपनापन था सो शिकवा किया मैंने भी
गीला करना मेरा, बुरा अंजाम हो गया
कल तक ग़ुरूर था मुझे अपने आप पर
आज मेरा ऐतबार भी नीलाम हो गया
क्या बचाऊं, सम्मान या इश्क़ अपना
आज मोहब्बत का इख़्तिताम हो गया
लो तुम्हारा इल्ज़ाम सर आंखों पे रखा
आज से बेशरम, बेवफ़ा मेरा नाम हो गया-
कौन रोके किस मुंह से रोके
आम कौन पाया नीम बो के
लाख़ राह जोहे पहाड़ आंखें
दरया कब लौटी विदा हो के
शाम ख़्वाब लाए सुबह आस
कैसे पार जाएं साहिल पे सो के
मनाने से कौन छोटा हुआ
बर्बाद हुआ थोथी अना ढो के
किनारे फिर गीला कर गया
एक ही बात को क्या टोके
बातों के लिए बातें जो ढूंढे
मत रोको उसे इतना रो-धो के-
ये कैसी भूख है जीने की?
कि जीने की भूख में
हर रोज़
मौत का निवाला निगलना पड़ता है।-
"ख़ुदा भी सियासतदानों सा हो गया"
मैं जब भी आसमां को देखता
कोई जवाब नहीं मिलता
बस मायूस भटकते ये बादल दिखते
सूरज किसी के विरह में जलता दिखता
तो चांद का बदन ठंडा पड़ गया है
जैसे किसी से बिछड़ने का
सदमा लगा हो इसे
(अनुशीर्षक में पढ़े)-
"उम्मीद ने मुझे बर्बाद की"
मैंने बस एक उम्मीद पाली
उम्मीद ने पाली ख़्वाब
और ख़्वाबों ने ख़ुशी पाली
ख़ुशी ख़ुद ब ख़ुद पाली भ्रम
और भ्रम ने जन्म दिया अभिमान
अभिमान ने पाला क्रोध
और क्रोध से बर्बादी मिली
मगर मुझे क्रोध ने नहीं
एक उम्मीद ने मुझे बर्बाद की है।।
मैंने बस एक उम्मीद पाली
उम्मीद ले आई तम्मनाएं
तमन्नाएं ने लाई दुख
और दुखों ने जन्म दिया डर को
डर ने मेरा आत्म सम्मान छीना
मगर मुझे इस डर ने नहीं
मुझे एक उम्मीद ने बर्बाद की है।।-
"आलोचक"
"दुनियां का सब से अच्छा शिक्षक
एक आलोचक होता है
और ये आपके दुश्मन नहीं हितैषी है"-
"मिलन की घड़ी आई है"
अपने थाल में सजाकर सितारों को
कई रातें परोसा हूं आसमां को
तब जाकर खींचा है काली चादर
मेरे सर से
देखो! आज हमारे उफ़ूक़ की टहनी पे
सूरज बैठने आया है
हमारी मिलन की घड़ी आई है
(अनुशीर्षक में पढ़े)-
चाहता हूं
टाक दूं तेरे टूटे ख़्वाब तेरी पलकों पे,
जैसे तुम चाहती हो टांकना
मेरी शर्ट की बटन।-
जब कुछ नहीं था
तो सब कुछ था,
जब सब कुछ है
तो कुछ नहीं है।
तो था क्या?
और है क्या?-