अभिव्यक्ति   (अभिव्यक्ति)
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अभिव्यक्ति
Joined 13 June 2021


अभिव्यक्ति
Joined 13 June 2021

भीगी थी तो भीगी भीगी थी हर पहर
सूखा इस कदर बरसा इक दफा कि
हर बारिश ने नमी छीनी

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मूर्खों के साथ तर्क वितर्क में कहे
अच्छे से अच्छे शब्द का कोई अर्थ नहीं रह जाता

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रोज़ याद करते हैं कि अब याद नहीं करेंगे
रोज़ भूल जाते हैं कि अब भूल चुके हम

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जागी सी आंखों को दे दो ना पलकों की चादर ज़रा

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Sensitive




I m sensible

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घावों को भरना नहीं चाहिए
ताज़ा रहे मर्ज
और खुद को याद रहे हर चोट

तो संभल कर चलने की जो सीख मिले जिंदगी से वो रफा दफा न हो जाए फिर

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ना जाने कहां चले जाते हैं सबब ज़िंदगी के...
एक दफा हंसना मुस्कुराना क्या शुरू किया
गम की वो वजहें फीकी पड़ गई

सबक की लकीरें छप जाया करे तो बेहतर हो ..
रोज़ आइना ज़िंदगी का असल चेहरा दिखाया करे तो बेहतर हो..

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भेदभाव


तेज़ तलवार से भी ज्यादा धारदार वार करता है

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यही सार यही अर्थ है
जीवन बस व्यर्थ है

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सुबह हुई रात बीती थी
एक रात बाकी हमेशा के लिए

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