अजब ये दोगलापन है मुझमें मेरी ही खातिर....
जीना भी चाहता हूँ और मौत की दुआ भी मांगता हूँ....-
And don't forget to live the current moment
शायद बदसूरत नहीं था मैं इतना भी....
बस देखने वालों ने जताया था उम्रभर....-
कहाँ मनाता है शोक कोई
मरने वाले के लिए
शोक तो मनाया जाता है
दिखाने के लिए
उन सबको जो जिंदा हैं-
जागते जागते गुजर जाती हैं बड़े शहरों की रातें...
अधूरे ख्वाबों से रोज नजरें मिलाना आसान नहीं होता....-
मेरे साथ ये जिंदगानी बिताने के ख्वाब बुनती कोई....
मेरे साथ बैठकर बस मेरी खामोशी को सुनती कोई...
दिलाती यकीन के , हूँ मैं भी प्यार करने के क़ाबिल....
ख्वाइश थी के मुझे,बस मैं होने के लिए चुनती कोई...-
मत आना मेरी तरफ गर देखो मेरा दिल टूटते हुए....
साफ था वो हमेशा कांच सा,कहीं चुभ न जाए तुम्हें....-
जबसे जुबां नज़्म,आंखें आपकी शराब हुई होंगी...
जानें कितनों की नींदें उस रोज से खराब हुई होंगी...
अंदाजा लगाएं भी तो,क्या लगाएं उसकी शामों का..
जिसकी सियाह जिंदगी का आप चराग हुई होंगी....-
ये सोच के कर दिया रुखसत मेहमानों को आज फिर...
परेशान होगी तन्हाई,मुझे गैरों से बातों में मशगूल देखकर...-
हम तन्हाई में लिखते रहे,वो बस खामोशी से पढ़ती रही....
दरिया के किनारों सी ये दास्ताँ,यूं ही मुसलसल चलती रही..-