"अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस"
एक "पुरुष" को मुकम्मल जहां नहीं मिलता;
यदि उसे "नारी" का पनाह नहीं मिलता|-
काश! अतीत में जाकर सही कर पता।
कुछ गलतियां ऐसी होती हैं,
जो उम्र भर दर्द देती है।
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माना,तुम्हारे आवाज़ का यह जादू है,
जो किया दिल पर काबू है;
बिना सुने ना रह पाता हूं,
सुनते ही तुझमें खो जाता हूं।
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मेरे ख्वाबों में आती तुम,
तुम्हें अपना समझता मैं;
मेरी तकदीर में ना तुम,
पर यूं गवा ना सकता मैं।-
अब हर एक मुकाम ख़ुद में ही तय हो गए;
पहले थे "हम" और अब "मैं" हो गए।-
माना कि बहुत रिश्ते हैं, दोस्त हैं, यार हैं
सबने सबको आजमाया है;
सबका साथ होते हुए भी,
मैंने हमेशा ख़ुद को तनहा पाया है।-
दुनिया की कुछ बातें तुमसे अब ज़रूरी हो गई,
तुझमें और समय में इतनी दूरी हो गई;
बीना चांद के चांदनी कैसी?
अब तो रातें तुम्हारे बिना अधूरी हो गई।-
इश्क़ के मोतियों को पिरोता जा रहा हूं;
अपनों से बीछड़ता,शान्त,दूर और
मौन होता जा रहा हूं।-
एक हसीं, एक नशा, एक ख़्वाब हो तुम;
बिना पिए जो चढ़े ऐसी शराब हो तुम।-