अभिषेक कुमार दुबे  
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बस कुछ यूं कह लीजिए की ,अभी बहुत कुछ बाकी है।
Joined 1 March 2019


बस कुछ यूं कह लीजिए की ,अभी बहुत कुछ बाकी है।
Joined 1 March 2019

तुम्हारी याद –

आए तो आँख ना लगे
सपने में आए तो आँख ना खुले

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माना,तुम्हारे आवाज़ का यह जादू है,
जो किया दिल पर काबू है;
बिना सुने ना रह पाता हूं,
सुनते ही तुझमें खो जाता हूं।

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मेरे ख्वाबों में आती तुम,
तुम्हें अपना समझता मैं;
मेरी तकदीर में ना तुम,
पर यूं गवा ना सकता मैं।

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अब हर एक मुकाम ख़ुद में ही तय हो गए;
पहले थे "हम" और अब "मैं" हो गए।

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माना कि बहुत रिश्ते हैं, दोस्त हैं, यार हैं
सबने सबको आजमाया है;
सबका साथ होते हुए भी,
मैंने हमेशा ख़ुद को तनहा पाया है।

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दुनिया की कुछ बातें तुमसे अब ज़रूरी हो गई,
तुझमें और समय में इतनी दूरी हो गई;
बीना चांद के चांदनी कैसी?
अब तो रातें तुम्हारे बिना अधूरी हो गई।

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इश्क़ के मोतियों को पिरोता जा रहा हूं;
अपनों से बीछड़ता,शान्त,दूर और
मौन होता जा रहा हूं।

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एक हसीं, एक नशा, एक ख़्वाब हो तुम;
बिना पिए जो चढ़े ऐसी शराब हो तुम।

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मिल बैठ के एक साथ कुछ ख़्वाबों को सिया तुमने,
एक शानदार खुशनुमा पल को जिया तुमने।
मोहब्बत में दोस्ती नहीं जनाब;
बल्कि,दोस्ती में मोहब्बत किया तुमने।

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गर्दिश में डूबा एक सितारा हूं;
कुछ अपनों का हूं,
कुछ तुम्हारा हूं।

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