अभिषेक कुमार यादव   (अभिषेक)
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Joined 28 December 2018


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Joined 28 December 2018

आज भी हमें खामोश रहना पसंद हैं
क्या पता, कब, किसे, हमसे बैर हो जाए

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अपनो की आदत सी लग गई हैं मुझे
अपनो के होते हुए भी,
अपनो की कमी खटकती हैं मुझे

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मैं जब भी कुछ लिखना चाहता हूँ
ना जाने खुद-ब-खुद तुम्हारा ख्याल क्यों आ जाता हैं

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गुजर न जाए ये साल तुम्हारी इंतजार में कही
एक दफा साथ आकर मुश्कुराओ तो सही— % &

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उनका कहना हैं
हम उन्हें याद नहीं करते

अब उन्हें आख़िर कैसे कहें
उनके अलावा किसी से हम बात नहीं करते— % &

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यूं ही बदनाम नहीं हुआ इश्क़ हमारा,
हमने एक दूजे को ज़रूरत से ज्यादा जो चाहा था ।— % &

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ज़िन्दगी की इस गुल्लक में
बेसुमार खनकती यादें है

हर सिक्कों पर लिखी है फ़साना मेरी
और फ़सानों में बस तुम्हारी यादें है

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मानो ये आकाश भी शामिल हो गई हैं आज जश्न में
जिधर भी देखो, जश्न-ए-इत्र फैलते ही जा रहा है ।

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कुछ पल यादों के साथ रह जाता है
बनकर लम्हा बस साथ ठहर जाता हैं

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ख्वाहिशों को कह दो ज़रा उड़ान भड़ने को
तुम्हें सँवारने को मैं आ रहा हूँ

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