Abhishek Yadav   (अभिषेक)
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श्रीजी कृपा केवलम् मेरी आत्म कथा
Joined 17 October 2018


श्रीजी कृपा केवलम् मेरी आत्म कथा
Joined 17 October 2018
26 AUG AT 23:10

थोड़ा बुरा लगेगा पर हैं
मेरा मानना भी और समझाना भी बिल्कुल स्पष्ट है आपको शास्त्र सम्मत ज्ञान से कर्म से या भक्ति व प्रेम से समझना हैं तो वर्तमान में परम पूज्य गुरुदेव भगवान श्री प्रेमानंद जी को सुनकर मिलकर समझ लो क्योंकि हम यहां तक समझाने के बाद अगर कोई नहीं समझता तो हम शास्त्र छोड़कर शस्त्रानुसार समझाने में ज्यादा यकीन रखते हैं क्योंकि तुम इतने आसुरी वृत्ति से भरे निकम्मे हो गए हो कि तुम्हे शास्त्र नीति से नहीं शस्त्र नीति से समझाया जा सकता हैं
जब शास्त्र व्यर्थ हो जाए तो शस्त्र सदैव उपयोगी और सार्थक हुए हैं क्योंकि आसुरी बुद्धि का अंतिम विकल्प ही यही है
इसलिए एक हाथ में हम सिर्फ घंटी और शास्त्र को ही अपना जीवन मानते हैं परन्तु दूसरे हाथ में शस्त्र को ही अपना जीवन ध्येय क्योंकि जैसा देवता वैसा अक्षत
इसलिए अपना थोड़ा एक कदम और ऊपर उठकर है
अहिंसा परमो धर्म: धर्म हिंसा तथैव च

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26 AUG AT 22:50

समाज और संसार को अपना परिवार अपना जीवन मानकर जो जो भी संसार के हित और कल्याण के लिए आगे आकर कार्य करेगा यह संसार उसका अपमान विरोध युगों युगों से सदैव करते आया है आगे भी करता रहेगा चाहे प्रभु श्रीराम आए चाहे प्रभु श्रीकृष्ण चाहे प्रभु श्रीपरशुराम चाहे बुद्ध तुलसीदास कबीरदास चैतन्य महाप्रभु विवेकानंद कालिदास आदिगुरु शंकराचार्य ऋषि अष्टावक्र व चाहे वर्तमान में श्री प्रेमानंद जी महाराज हो ऐसे अनन्त महापुरुष एवं साक्षात् हरि शिव भी धरती पर आए हैं यह संसार उनका भी खुलकर खूब विरोध किया हैं जबकि ऐसे महापुरुषों में राग द्वेष ईर्ष्या अहंकार लोभ मोह जैसी कोई भी चीज हृदय में नहीं रहता तू मैं तेरा मेरा से परे जो स्वयं प्रभु ही संसार उद्धार एवं कल्याण के लिए शरीर धारण कर प्रत्येक जीव का कल्याण करने के लिए धर्म सत्य प्रेम समझाने के लिए धरती पर शरीर धारण कर आते हैं परंतु फिर भी संसार में रचने पचने एवं अहंकार में रमने वाले जीव उनको भी उनकी बुराई अपमान निन्दा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते जबकि उनके इस बर्ताव से उनका कुछ नहीं होगा क्योंकि वो माया के अधीन नहीं माया से परे है और सृष्टि प्रकृति माया के आधीन हैं परन्तु उन जीव का पतन और जीवन व्यर्थ हो जाता हैं जो महापुरुषों के लिए कटु वचन या निंदा दोष अपमान करते हैं
इसलिए संसार आपको वही देगा जो श्रीराम श्रीकृष्ण बुद्ध तुलसीदास जैसे महापुरुषों को दिया था

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25 AUG AT 9:24

भगवान को दोष देने से अच्छा स्वयं को देखो
अगर भगवान ने जीवन दिया है तो जीवन जीने की कला रूपी मां गीता भी पूरे मानव जाति को दिया है
हर परिस्थिति से लड़ने की हर परिस्थिति से बाहर निकलने की दुखों पर और मन पर विजय प्राप्त करने की
अहंकार की सत्ता जड़ से मिटा देने की स्वयं को अजेय बना देने की
जन्म मृत्यु के बीच के अद्भुत सामंजस्य बना देने की भवसागर से पार होने की एकाकी में या लाखों की भीड़ में सम होने की सारे द्वंद्वों को अपने से हटा देने की
शून्य में शिखरता के विश्रामु पाने की
स्व की सत्ता में स्थिर होने की उसी में मिला देने की
ऐसा क्या नहीं है जो भगवान ने हमारे उद्धार और कल्याण के लिए हमें दिया नहीं है गीता में वो सब है जिसकी खोज प्रत्येक जीव कर रहा है
फिर भी रोना मिटा नहीं जन्मों जन्मों का नाटक खत्म हुआ नहीं यही सबसे बड़ा दुःख हैं

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23 AUG AT 11:56

अभागे तब आप हो जाते है जब चार वेद छः शास्त्र 18 पुराण 108 उपनिषद् होते हुए भी आप इस मानव जीवन रूपी काया को कृतार्थ नहीं कर पाते कल्याणमई नहीं कर पाते भगवतमई नहीं कर पाते

इससे बड़ा दुख कुछ नहीं मानव के लिए

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23 AUG AT 9:45

तुम्हारे धर्म कर्म में वो ताकत नहीं हैं जो तुम्हे पापों से मुक्त कर सके एक वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण मात्र में वो सामर्थ है जो तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर सके
इसलिए श्रीकृष्ण की ओर बढ़े
एक श्रीकृष्ण के होकर ही सभी पापों से ही नहीं अपितु सभी द्वंद्वों से मुक्त हुआ जा सकता हैं

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23 AUG AT 6:32

एक श्रीकृष्ण मिल जाए तो जगत स्वतः ही विस्मृत हो जाता हैं

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22 AUG AT 18:41

किन गलियों में अब तुम आना चाहते हो
ये गलियां तो अब सिर्फ श्रीकृष्ण की हैं

बिना उसकी इजाजत के
अब मुझसे मिल पाना मुश्किल हैं
मेरा हो पाना तो बहुत दूर की बात हैं

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22 AUG AT 17:00

सहचरी बन मैं घूमूंगी गोविंद के गलियन में
सच में मुझसे मिलना हैं तो श्रीनिकुंज में आना होगा

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22 AUG AT 16:46

घर छूटा परिवार छूटा छुटा जगत की यारी
एक श्रीकृष्ण के प्रेम में मैं भई मतवारी

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21 AUG AT 20:16

योद्धा हूं इसलिए हर स्तर से और हर प्रकार से तैयार हूं जब हम दूसरे के हक के लिए लड़ जाते हैं जो वंचित असहाय हैं उनके लिए तो भला अपने पर बात आ जाए तो कैसे पीछे हट सकते हैं मृत्यु तो आनी ही है सबकुछ छूटना ही हैं फिर डर भय किसकी और क्यों सत्य की लड़ाई लड़ना और सत्य के लिए मरना भी वीरगति प्रदान करती है

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