Abhishek Vats   (Abhishek Vats)
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Joined 10 April 2020


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11 JUL 2021 AT 8:18

लकीरों से था वो फ़कीर ,मेरे अमीर दोस्त
संग ले चले मिटाकर वो लकीर , मेरे अमीर दोस्त

ज़िद्द देख खुशी में पागल रोता रहा शब भर
गीले धब्बों ने बोले ए अमीर मेरे अमीर दोस्त

विसाल-ए-राह में कमाए चंद फालतू लोग
है चलती अब उन्हीं से राहे-गुज़र ,मेरे अमीर दोस्त

भीगी आवाज में बात उनसे कर लेना इक बार
जहां रोशन करने में बड़े मुनीर मेरे अमीर दोस्त

कस के थामे रखा हाथ उसने मौत के वक्त
फिर मौत भी बनी रही नसीर ,मेरे अमीर दोस्त

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19 JUN 2021 AT 1:56

वही कलम वही किताब लिए बंजर बैठा हूं
बेसाख्ता सा में अभी भी तेरे शहर बैठा हूं

समझदार को नासमझी अच्छी नहीं लगती
इलाही मैं खुद कई बार नासमझी कर बैठा हूं

अब क्यों हिसाब मांगते हो ज़माने वालों
के वो किताब तो में बंद कर बैठा हूं

गुस्सा होता है तो ज़रा तबियत से हुआ कर
इस अदा को मैं मोहब्बत समझ कर बैठा हूं

सितारों आज की रात बहुत रोशन है
आज रात में चांद से सट कर बैठा हूं

क्यों एक पुराना मकान ढूंढते वो यहां
उस मकान का मलवा तक बेच कर बैठा हूं

बड़े गुमान में रहा के अपनों की महफ़िल है
असल में अपनों की महफ़िल अब जा कर बैठा हूं

कितने सलीके से हमनें बनाया था ये रिश्ता
हां वो ही रिश्ता में अब उधेड़ कर बैठा हूं

नहीं मिली कोई तरकीब इन किताबों में
इन किताबों को आग लगा कर बैठा हूं

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18 MAR 2021 AT 16:43

परेशान ज़ेहन जागता था रातों को फिर
निकाल सीने से वही चेहरा छोड़ गया

दीवाने को बुलाने से क्या फायदा यारों
सीने पे ज़ख्म-ओ-दाग गहरा छोड़ गया

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18 MAR 2021 AT 12:30

मेरे शेर पढ़ता है बहुत सताया लगता है
इंसान वो मुझसे ज़्यादा सताया लगता है

कुछ लफ्ज़ दिल-ए-गोशों में थे लिखे चोरी हुए
लगता है दीवाना इन से काफ़ी सरमाया लगता है

आया है वो हारकर उसके खूलूस से ही कि
यार वो पक्के खिलाड़ी का हराया लगता है

मोहब्बत को पूछो क्या है उसका दूसरा पता
कि यहां उसके शहर का बहुत किराया लगता है

मैं रहता हूं उसी की बनाई दुनिया में अब
हर एक चीज़ यहां बेज़ार न कोई पराया लगता है

खेलते रहते हैं जोड़ना तोड़ना दीवाने दिल से
ये खिलौना उसी का, उसी का बनाया लगता है

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14 FEB 2021 AT 9:25

रकीब से या ज़माने से पूछा जाए तो कैसे
तुझ पे तेरे ही जैसा कुछ लिखा जाए तो कैसे

बहुत साहिर है सियाह चश्म की नजर तो
दुनिया को इस सराब से बचाया जाए तो कैसे

माज़ी मेरा अभी तक सर पटकता है उसके दर
उसे दिलासा देकर वापिस लाया जाए तो कैसे

बेख्वाबी मेरी हंसकर कहती है मुझसे
ख़्वाब खूबसूरत का न लाया जाए तो कैसे

कर्ज़े में रहता हूं उसके शहर में अक्सर कहो
मोहब्बत की दुकानों का कर्जा चुकाया जाए तो कैसे

करना अलग मेरे दिल को मेरे सीने से मगर
न कहना मोहब्बत को वापिस बुलाया जाए तो कैसे

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21 JAN 2021 AT 15:38

ये सलीका ये लेहजा-ए-रूहाना मुझे भी सिखा दो
यूं अल्फाजों को बिगाड़ना मुझे भी सिखा दो

कुछ यूं देता है वो सदा के तारे सिमट जाते हैं
इस तरह दिल को चूर करना मुझे भी सिखा दो

कुछ धागे ज़िन्दगी के मुझसे उलझ गए है यारों
मिला करो इन्हें सुलझाना मुझे भी सिखा दो

बराबर रहा है इक शौख नजर का मुझे बुखार
खुद को चारासाजों से बचाना मुझे भी सिखा दो

ज़ीस्त का टुकड़ा टूट गया एक तुझे जोड़ते जोड़ते
बस ये फ़िज़ूल टुकड़ों को फेंकना मुझे भी सिखा दो

नज़रों में दिखती है उसके अश्कों की समझदारी
कम से कम आस्तीन को सुखाना मुझे भी सिखा दो

मेरे लिखे खत मुझसे ही ज़ुबान लड़ाने लगे हैं
खूबसूरत चीज़ों को यूं जलाना मुझे भी सिखा दो

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25 DEC 2020 AT 9:12

उस घर को भी वेहम है उसे समझाया कर
समझदार वो चली गई है उसे समझाया कर

केवल हमको ना थी तेरा माथा चूमने की चाह
मौका कम से कम ये जुल्फों को तो फरमाया कर

अपने मर्ज के बारे में पूछा उसके मरीज़ों ने
रहम खा पूरी बात मरीज़ों को तो बताया कर

इत्तेफाकन गर आ जाए कोई तेरी गली में
तो यूं मुस्कुराकर उसे रास्ता ना बताया कर

वो जो गुलाब था तोड़ा तो किस ने तोड़ा
इल्जाम कभी तेरे आशिकों पर तो लगाया कर

अब सुकून को उसके साए से लिपटता हूं मैं
मेरे घर में कोई अब चराग न जलाया कर

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27 NOV 2020 AT 11:10

इश्क़ के नहीं मिले वकील हमको हारना था
अदालत भी रही उनकी क्या सितम हारना था

उस अक्स को पूछ गछ फिरते हैं लोगों से कि
हसीन लफ्जों से उसके गज़ल को संवारना था

मिला करेंगे यूं ही वो कह चले बिन नज़रें मिलाए
शब भर कहां कैसे कब फिर यही सोचना था

क्या कुछ तरकीब नहीं करते इश्क़ करने वाले
मगर उसकी तरकीब का अंदाज़ ही यगाना था

तलाशते हैं जाम वहीं उसी मयखाने जा जा कर
शियाह चश्मगी का अंज़ाम हम ही को उठाना था

वो लब वो तबस्सुम शरर मिलाते हैं दिल में
मुश्किल था मगर शब भर दिल भी चलाना था

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1 NOV 2020 AT 11:28

अब तो बेकार शेरों पर भी सुरूर पाते हैं ,
तेरे अज़ाबौं का इस्तेमाल कर लिखते हैं

गज़ल लिखते वक्त कलम फ़िज़ूल दीवानी है
असल मेहबूब है कलम हम शेर लिखते हैं

कितनी बेरुखी आ गई है उसके लेहजे़ मैं
कोई चुभा दे कांटे वो भी बेहतर लगते हैं

तू किराए दार है ज़रा हद में रहा कर वरना
खूबसूरत मकान के बहुत किराये दार रहते हैं

ऐसा भी नहीं के में ही दीवाना कर दिया गया
जो भी उस मकान में रहते है दीवाने होकर रहते हैं

ये क्या है अचानक सीने में दर्द उठा है, ढेर है
फ़िज़ूल खयालों का जो बेख़्तियार सुलगते हैं

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11 OCT 2020 AT 12:57

हंसी ज़माने बाद क्यों न दिल मुत्मईन बना कर बैठो
ऐ समझदारों ये हसीं गलती एक दफा कर बैठो

क्या कहूं जब ये पायल भी दीवानी होकर छनकती है
क्या करेंगे सुरीले सासो-सामां सब जला कर बैठो

शामों तुम इतनी भी खूबसूरत नहीं ये एतराफ करो
बाम पर न आंए जब तलक आंख झुका कर बैठो

सितारों तुम भूल में जी रहे हो चांद को समझो ज़रा
उसके शागिर्द बनो फिर उसी कूचे में जा कर बैठो

हवाओं क्यों बेसबब इतराती फिरती हो आजकल
खुशबू बख्शीश है उसकी हवाओं चुप लगा कर बैठो

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