कुछ ग़मगीन खयालों, तो कुछ ख्वाबों मे निकल गई, और जो उम्र थी मेरी,कुछ किताबों मे निकल गई। मुझसे बिछड़ के सवर गई तुम,झूठ मत बोलो, जबसे रुख्सत हुई तुम, जिन्दगी बस अजाबो मे निकल गई।
हमें मुश्किलों में रहना भी मुहाल करते हैं... वो यार,ऐ अमन अक्सर कमाल करते हैं... मुसीबतें बेअसर हो जाती हैं उनका असर देखकर, तलवारे हम पर आती हों तो वो खुद को ढाल करते हैं....