आज फिर टूटी होगी जरूर पेड़ की कोई तो डाली
यूँ ही नहीं बेचैन हुआ है बेमतलब में माली-
एक रोज भ्रमर सा आऊं
तुझे देख जरा इठलाऊँ
तू चाहे चूम अधर ले
मेरे संग झूम उमर ले
पर हो न सका मुमकिन ये अगर
मैं सदा नींद सो जाऊं
एक रोज भ्रमर सा आऊं..
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लूं झलक , पलक को थामे
तेरी मुस्की ज्यों हाँ हो हाँ में
तू चाहे जरा पल दो पल
होकर सब से ही ओझल
बैठ साथ ,ले थाम हाथ
कुछ बढ़ा बात ,तेरी बातों में खो जाऊं
पर हो न सके मुमकिन ये अगर
मैं सदा नींद सो जाऊं
एक रोज भ्रमर सा आऊं
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माना शर्कश में चाबुक से सिंहनाद डर जाता है
है रहता वह फिर भी शेर बस जमीर मर जाता है-
इश्क दावत दिलाता है , गम में लिट्टी नहीं मिलती
मिलन इतिहास लिखता है ,विरह चिट्ठी नहीं लिखती
अजब तन्हाई का मजहब , गज़ब ये दफ़्न करता है
कब्र में दिल पड़ा होता है पर मिट्टी नहीं मिलती-
उसकी खुशबू समेटे न हवा होने पे लानत हैं
दरार -ए-दिल नहीं भरता दवा होने पे लानत है
जिन्हें ए इल्म होता है, विरह का जुल्म होता है
मोहब्बत जो नहीं करते जवां होने पे लानत है-
किस छोर तलक डालूं दृष्टि , क्या गलत सही क्या विचारूं मैं
आ मौत मेरा आलिंगन कर , अपना सबकुछ तुझ पर ही वारूँ मै
अनुरूप सभी के उम्मीदों पर , ज्यों भवर नावं से पेचींदों पर
किस ओर बढूं , किस कदर लडूं , बन सकूँगा कितना जुझारू मैं
आ मौत मेरा आलिंगन कर , अपना सब कुछ तुझ पर ही वारूँ मैं
बह सका हवा अनुकूल नहीं , किंचित थी वह मेरी भूल नहीं
मिथ्य तथ्य पर क्षणिक त्वरित वह रोष मेरा
लो मान लिया है दोष मेरा , अब क्या क्या कमियाँ स्वीकारूँ मैं
आ मौत मेरा आलिंगन कर , अपना सबकुछ तुझ पर ही वारूँ मै
"युद्ध-क्षुब्ध" में , "क्रोध-बोध" में , तम तम पौरुष के प्रबल शोध में
मदमत्त जवानी झोंकी है, पर बूंद न यौवन का जाया है
क्या इसने भी नहीं तुझे ललचाया है ??????
अब तो कर ले तू आत्मसात , हो अभी इसी क्षण मिलन रात , न पलकें फिर कभी उभारुं मैं............
आ मौत मेरा आलिंगन कर , अपना सब कुछ तुझ पर ही वारूँ मैं
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थकते कदम की मंजिले आबाद क्या बर्बाद क्या?
भरपूर कोशिश के सुकूँ में अब भूल कैसी याद क्या ?
होना था जो न हो सका ,होगा क्या फिर बाद क्या?
एक ही बस टीस चुभती , रहा चुभता सदा ही टीस बन
सुकूँ की आस करने वालों को भी बींधता ही रह गया
फिर क्या फ़र्क थीं कोशिशें क्या फरियाद क्या ?
हद कोशिशों की हो गई,फिर हार या कि विजयनाद क्या ?
कर अंत लेना जीत हो , यूँ , ज्यूँ लपट पर नींद हो ..
फिर पाखंड क्या अवसाद क्या अपवाद क्या ?
अच्छा सुनो.. थकते कदम की प्यास भी प्रचंड है
उसपे भी ये संदेश कहना जो अंनत है अखंड है
तो दे सको तो दे ही दो कुछ बूंद जल की छलकियाँ
बुझा लूं प्यास जो इस तन को है
या कि करना माफ़ थोड़ी गलतियां
और एक बार तो पाना कोई सुकूँ हमसे
क्योंकि इसकी प्यास बर्षों से हमारे मन को है ...
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हृदय हर्षा, नेह वर्षा, पुलकित पवन प्रभात आज का
चंद्र, तारक हो मुबारक जन्म दिवस हे भ्रात आपका-
हम दीवान-ए-आम बने , दरबार सभी बन जाते हैं
हमको है बनना शिलालेख, अखबार सभी बन जाते हैं-
कनक न मन की लालसा , वित्त न चाहे चित्त
गोपिकान्त जेहिं देहिं दरश , होय हमारो हित्त-