तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल सा थरथर राता हूं
तू चांदनी सी शीतल, फूलों सी कोमल
मैं बन काला भौंरा उस पर मंडराता हूं
तू किसी ठहरी हुई सर्द रात सी
मै उसपर ओस बनकर बिखर जाता हूं
तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल सा थरथर राता हूं
तू सुबह की खिली धूप सी ,
मैं सितारों सा जगमगाता हूं
तेरी आहट पाकर बस
मैं यूहीं थम सा जाता हूं
तू कोयल की आवाज़ सी मीठी
मैं शक्कर सा घुल जाता हूं
तू कल कल निनाद बहती नदी सी
मैं उसमे गोते लगता हूं
तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल सा थरथर राता हूं
तू आंखों में नींद सी ,
मैं उसपर पलक बन जाता हूं
तू चलती हुई सांस सी तो,
मैं धड़कन बन जाता हूं
तू ओंठो पर बिखरी मुस्कान सी तो
मैं एहसास बन जाता हूं
तू लगती है किसी परछाईं सी तो
मैं आगे चलता नजर आता हूं
कैसे बताऊं की तेरी हर मुस्कान पर
मैं अपनी सारी दुनिया हार जाता हूं
तू किसी रेल सी गुजरती है और
मैं किसी पुल सा थरथराता हूं-
मां त्याग है , मां तपस्या है, मां समर्पण है
मां मेरे जीवन के सारे दुखों का तर्पण हैं
मां धैर्य है, मां कर्म है
मां में ही सारे मर्म हैं
मां ही कर्ता है मां ही कृत्य हैं
मां ही जीवन की ध्वनि और मां ही लालित्य हैं
मां हैं तो सारे दुखों में भी सुख है
मां ही तो बस निस्वार्थ हैं,बाकी सब जग स्वार्थ है
मां बच्चे की पहले बोल हैं, सबकी ही तो मां अनमोल हैं
मां का रिश्ता ही निराला है , एक मां ही तो है जिसने निस्वार्थ सबको संभाला है
मां में ही सारे तीर्थ पुण्य, मां बिन जीवन शून्य,
मां से ही दीवाली रमजान , मां ही जग में सबसे महान
मां से ही जीवन शुरू, मां ही है पहली गुरु
मां ही अविरल सरल, मां सा नहीं कोई निश्चल-
मैंने समय को बदलते देखा है,
ख्वाबों को हकीकत में बदलते देखा है
देखा है कि शाम कैसे ढलती है,
कैसे नया सबेरा लिए सूरज फिर उगता है
देखा है कई अपनों को बदलते हुए ,
कई गैरों को अपने संग चलते हुए
मैंने समय को बदलते देखा है
देखीं हैं वो तिरस्कार भरी नजरें
तो चाहने वालों का प्यार भी देखा है
हर दिन होने वाले उजाले के साथ
जिंदगी का अंधकार भी देखा है
देखा है नए जीवन का प्रस्फुटन
तो देखा है संग में मृत्यु का वरण
अमृत के संग होते विषपान को भी देखा है
मैंने समय को बदलते देखा है-
दिलों से दिल लगाने की अब भी थी हसरत बहुत
पर अब फिर से दिल को जख्मी करने की नहीं बची हिम्मत
सोचा था एक आशियाना शहर में बना लेने को,
पर इस दिल से गांव का निकलना मुश्किल था बहुत-
खुद को जीने की तसल्ली में मैं बहाने नहीं देता
अब तेरी याद आए तो मैं आने नहीं देता
गम से कहता हूं कि आओ , तुम्हें जाने नहीं दूंगा
और जो वो आ जाय तो फिर उसको जाने नहीं देता
ये तेरा जर्फ है कि तू फिर आया ही नहीं
ये मेरा जर्फ़ है फिर भी मैं तुझे ताने नहीं देता
मैं भी जख्मों की नुमाइश में खड़ा हूं लेकिन
रूह के जख्म अब मुझको कोई दिखाने नहीं देता-
चांद फलक पर है और रोशनी धरती पर
नजरें तुझ पर हैं और सुकून मेरे दिल पर
चाहता हूं कि तेरे आगोश में ही रह जाऊं
पर तू हाथों में है बस,नहीं मेरी लकीरों पर❣️❣️-
बात इतनी है कि बात इतनी ही नहीं है
जो दिल में है अब वो बस जुबां पर नहीं है
फ़क़त ये नहीं कि मैं ही उसे चाहता हूं
इल्म बस ये कि अब वो चाहत भी याद नहीं है-
मैं हफ्ते की व्यस्तता
तुम इतवार वाला सुकून
मैं हर बात की असफलता
तुम सफल होने का जुनून
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मैं मैं ही रह गया और तुम हम हो गई
दर्द जो मेरे दिल में उसका तुम मरहम हो गई
था उम्र भर परछाई सा बनने का इरादा
पर दोस्ती ही कुछ अंधेरे संग हो गई-
आए थे कुछ काफ़िर मुझे तुझसे जुदा करने
कि अब उन्हें मैं क्या बताऊं कि मेरी रूह में है बस बसेरा तेरा
और अक्सर अक्स तेरा ओढ़ कर ,जमाने से बच जाता हूं मैं
अब कैसे समझाऊं उन्हें, कि आंखे देखती ही है बस रास्ता तेरा-