Abhishek Swaraj   (अभिषेक स्वराज)
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Joined 8 February 2019


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4 NOV 2021 AT 0:37

मसाले   सभी   ने   रखे   हाथों  में  है
हो  रोते   अगर   तो   रहो  दूर   जानी

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30 MAY 2021 AT 23:56

मैंने देखा है
समाज के काफ़ी लड़कों को
उन लड़कियों का
साथ देते हुए
जो लड़कियाँ अपने
हक की लड़ाई लड़ना
आरंभ करती हैं

पर नहीं देखा मैंने
कभी किसी
"समानता के नेताओं" को
उनका साथ देते हुए जो
ना कि लड़के हैं और ना लड़कियाँ!

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30 MAY 2021 AT 13:33

एक बड़ा भयानक नज़ारा देख लिया मैंने
कोई भी बचता नहीं हमारा देख लिया मैंने

"साथ रहेंगे हमेशा" कह जाते हैं कुछ पागल
ख़ुदा 'वक़्त' को नहीं गवारा देख लिया मैंने

दोस्त रहते हैं साथ रहते हैं चाहिए सभी को
बग़ैर इसके सब बेसहारा देख लिया मैंने

इश्क़ करो ख़ूब करो,पीछे हटने की वजह क्या
जो ना किया वो रहा बेचारा देख लिया मैंने

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26 MAY 2021 AT 19:57

कहने सुनने वाली मोहब्बत से मेरा जी नहीं भरता
आओ एक दूसरे की बाहों में बस चुप रहकर देखें

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23 MAY 2021 AT 16:45

अकेले ही चलता रहूँगा , दुनिया वीरान है तो है
डर नहीं गोलियों का , माहौल श्मशान है तो है

चाय के दुकान पर मिलते हैं दोनों पार के लोग
धर्म के ठेकेदारों का सब पर लगान है तो है

मैं इक तीली ही सही, मशालें जलानी है मुझे
चिंता गाँवों की हो रही, शहर कूड़ादान है तो है

धमक परे वो ," मुहब्बत सरहद देख के कर"
हवा का पक्का यार मैं, सरहद हैरान है तो है

लेखन में रुचि थी, खयाल भी उसके अच्छे थें
बड़ों की चाहत पूरी हुई, बच्चा परेशान है तो है

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22 MAY 2021 AT 19:40

बाज़ी लगा कर उससे अक्सर हार जाता हूँ
बात बस इतनी है कि बातें उससे होती रहे

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2 MAR 2021 AT 11:11

पूछ बैठे हो जो हमसे हाल हमारा,
तो सुनते जाओ

" फ़िल्टर लगा लगाके ज़िंदगी चल रही है "

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17 FEB 2021 AT 2:00

मत पूछिये हमसे हाल हमारा
हम लापरवाह से दीवाने हैं

कभी जंगलों में भटकने को मुहब्बत कहते हैं
कभी चार दीवारी में बस जाने को इबादत!

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3 AUG 2020 AT 9:50

बात है कोई तो बताओ भी
आसमाँ से घटा हटाओ भी

पकड़े तलवार तुम थके नहीं क्या
हाथ में तुम कलम उठाओ भी

इश्क़ करती हो तुम पता है मुझे
चूम माथा मेरा जताओ भी

लग रही तुम बहुत ही सुंदर आज
माँ के झुमके हैं क्या बताओ भी

ज़हर पी कर कहाँ गया देखो
इश्क़ करना उसे सिखाओ भी

ज़िंदगी आम चाहिए किसको
खूँ में मिट्टी कभी मिलाओ भी

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25 JUL 2020 AT 8:46

मसला क्या था क्यों मुझको वो ग़ौर से देखा करता था
सपना जी रहा था उसका या सपने दिखाया करता था

हाथ पकड़के उस बच्चे का मेरी जवानी रोती है
इक रोटी ख़ातिर मैं भी कभी बोझ उठाया करता था

लोग मुझे बदकिस्मत क्यों कहते हैं ये वो ही जानें
खुशियाँ सारी अपनी उनके जेब में डाला करता था

सौ के नोट हैं जेब में फ़िर भी ख़ुद को दीन समझता हूँ
बचपन में दो इक चिल्लर का रौब दिखाया करता था

सोच समझकर ही बोला करिये आप अपने लोगों से
बिन बोले भी मैं उनका दुश्मन हो जाया करता था

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