परदेस की नौकरी
हो भईया, तुम कहत हो,
काहे आए हमरा देश, छोड़ के अप्पन परदेस,
हमरा भी नौकरी खा गए हो,
भूल गए हो अप्पन भूषा और भेष॥
अरे हम कहते हैं, सुनो न मालिक,
दर-दर भटके हैं दो रोटी को,
तनिक तुमहरी थाली से जो, एक रोटी हम लेई लिए,
क्यों भागे भागे आए, हमको मारने को॥
घर में राशन खतम पड़ा है,
मां बापू के पेट में जो मरोड़ उठा है।
बस उनकी खातिर आए हैं,
न त, घर से इतना दूर कौन रहता है॥
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