Abhishek Singh   (©Abhi)
602 Followers · 262 Following

read more
Joined 12 July 2018


read more
Joined 12 July 2018
3 MAR 2021 AT 4:47

न जाने क्यों कैसे; मैं इतना गलत हो गया,
मैं खुद नहीं जानता; कैसे ये गज़ब हो गया,

चंद मोहब्बत की मोहलतों में; कब किसकी मिल्कियत हो गया,
देखा था हैरत से; एक रोज़ शोहरतों को, तबसे बेगैरत हो गया।

-


16 DEC 2020 AT 5:57

चलो; खो कर अंधेरों में, उजालों की तलाश करेंगे,
बीते हुए कल को, हसीन कल में; फिर से याद करेंगे,

जब कोई न होगा सहारा; राहों में, खुद से मुलाकात करेंगे,
आज की अधूरी हर शाम को, मुकम्मल; हर रात करेंगे।

-


24 JUN 2020 AT 6:06

मुकद्दर ने एक नया स्वांग रचाया है,
समय का पहिया दोराहे पर ले आया है,

मिथ्याबोध ने सबको अपने जाल में फसाया है,
इस जग में अपना अभी और कर्ज बकाया है।

-


14 MAY 2020 AT 13:01

तुम्हारे सभ्य समाज से अच्छी, बेआबरुओं की मज़ार है,
बांटा है तुमने खुदा को भी, और दर पर हमारे धर्म ही बेज़ार है,

सौदा होता जिस्म का है, पर रूह पर सिर्फ खुद का अधिकार है,
अगर होता है ऐसा होना इंसान, तो इंसान होने पर धिक्कार है।

-


3 MAY 2020 AT 12:41

जब भी दिल टूटेगा, फ़रियाद आएगी,
भरोसा रख्खो, फिर याद आएगी,

हो कर मुराद, वो तलाश बन जाएगी,
मुकम्मल सी, एक अधूरी प्यास बन जाएगी।

-


2 MAY 2020 AT 9:30

ख़्वाबों की ख़लल से, ख्वाहिशों की ख़ाक तक,
यादों के महताब से, एक इरादतन इत्तेफ़ाक़ तक,

उसकी बेरुखी मुस्कान से, एक मनचले मज़ाक तक,
लुटाकर मैं जहान बैठा हूँ, और वो ख़फ़ा हैं मुझसे आज तक।

-


30 APR 2020 AT 14:12

रंगमंच के कलाकार हैं, सबको अपना किरदार निभाना हैं,
महदूद है कुछ करम से, पर मकसद छाप छोड़ जाना हैं,

मुमकिन न हो तो न समझ, समय के पहिये का यही फ़साना हैं,
आज उसको था, कल मुझे फिर किसी और को यही दोहराना हैं।

-


28 APR 2020 AT 21:14

क्यों-न तुझे लिख कर एक रोज; खुद से जुदा कर दूँ
तेरी चाहतों को; चंद लफ़्ज़ों के लिए रुसवा कर दूँ

ज़ेहन से तेरी सारी यादों को; अब बस फ़ना कर दूँ
किया था जिसको खुदा; अब तो उसको रिहा कर दूँ।

-


2 APR 2020 AT 0:56

तर्जुमा कर-कर के तासीर को भुनाया है ,
पर उसका हुस्न तराशने से; शब्दो ने इंकार जताया है,

निगाहों के खेल से अब-तलक ये दिल कहाँ सँभल पाया है,
ज़ुल्फ़ों-के-जाल ने फिर से इस कबूतर-दिल को फसाया है।

-


27 MAR 2020 AT 19:28

यूँ तो इत्तेफाकन बहुत एहतियात रखते है,
सब जानते है; के क्यों वो लबों पर नक़ाब रखते है,

निगाहों से शिकायत का सिलसिला बदस्तूर पाक रखते है,
वो एक इशारे से; हमारी धड़कनों को कुछ इस तरह बेताब रखते है।

-


Fetching Abhishek Singh Quotes