यकीं मान ज्यादा नहीं चाहिए
तू हिसाब लगा ले बस हिसाब से चाहिए
खुशियाँ मेरे अपनों की कितने में देगा ऐ खुदा
आरती चलेगी या दुआ नवाज़ से चाहिए
रंगों में बटे हैं लोग मेरे
सफेद हरा नीला या सलामी लाल से चाहिए
गुलामी कबूल हैं तेरी झुकना भी पसंद करूंगा
मुझे बस एक हुजरा खुले आसमा में चाहिए
और शब्द काफ़ी हैं मेरे की सिर मैं झुकाऊं
क्या तुझको बाली फिर हलाल से चाहिए
यकीं मान ज्यादा नहीं चाहिए
तू हिसाब लगा ले बस हिसाब से चाहिए.-
बिखर कर फ़िर सवर् जानें का हुनर रखता हूँ
हर कदम् हर ... read more
मुझें तो मुस्तकील नहीं लगता
वो शक्स इस काबिल नहीं लगता
पूरी जिन्दगी बीता दें इंतज़ार में
हम से गर वो साहिल नहीं लगता.
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मुकम्मल हों नहीं सकता
मेरा होना यूं बिन तेरे
तू हैं तो हैं मेरी सांसें
मेरी जिन्दगी मेरी ज़िद हैं
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ये मुस्तकिल कोशिशें तुझें पाने की
मैं जीता नहीं हूं मगर हारने नहीं देती.
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ईश्क इबादत हैं बर्बादी थोड़ी हैं
उनसे मुहब्बत हैं बस यारी थोड़ी हैं
साथ उनके रहूं महसूस करवाऊं
निभानी हैं यार दिखानी थोड़ी हैं
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उनसे मिलना हरगिज़ नहीं
उन्हें जताना हरगिज़ नहीं
मुहब्बत हमने की हैं उनसे
कसूर उनका बताना हरगिज़ नहीं
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मेरा कसूर ये हैं मैं आज भी यहीं हूं
तू तो बदल गया हैं हमराज मैं वहीं हूं
खाई थी साथ कसमें और वादें जो किए थे
तू सब भूला चुका मैं उस ख़्वाब में कहीं हूं
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तू मेरे स्वर में, मेरे शब्दों में चल कर देख लें
गर यकीं आए न तुझको, फिर पलट कर देख लें
रात को जलता हुआ, दीपक जो तुझको बनना हैं
दिन में उस दीपक के हक़ में, थोड़ा लड़ कर देख लें
जब न रहती लोह, न बाती, न ही अंधियारा रहें
उनके संग में कोई फिर न, न ही उजयारा रहें
इस समय में साथ साथी, तू भी बन कर देख लें
गर यकीं आए न तुझ को, फिर पलट कर देख लें
शाम तक वो राह तकता, पूरा दिन बैठे न थकता
साथ सन्नाटा हैं उसके, फिर कहो कैसे संभलता
आंसू के संग बह रही, तू पीड़ा पड़ कर देख लें
गर यकीं आए न तुझ को, फिर पलट कर देख लें
दिन गया तो तेल बाती, आग उसको मिलती हैं
फिर कही मुस्काता हैं वो, फिर कही लोह जलती हैं
एक घनेरी रात का, दीपक तू बन कर देख लें
गर यकीं आए न तुझ को, फिर पलट कर देख लें.
एस्तोमर की कलम.-
दो यार गुलज़ार
जिनके बिन
न शब्द न शायरी
न दिखावा न यारी
न उत्साह न खुमारी
न आदि न अंत
न चैन न द्वंद
न पीड़ा न आनंद
न अंक न गणित
न प्यार न प्रीत
न राग न गीत
न मौह न माया
न धूप न छाया
न दृश्य न छलावा
न राजा न रंक
न कृष्ण न कंस
न शिव न भंग
न मौक्ष न सजा
न रोग न दवा
न शौक न सभा
न जीवन न मरण
न त्याग न धरण
न वर्ण न विवर्ण
बाकी सब तो दिखावा हैं
हर पल उन संग बिताना हैं।
- एस्तोमर की कलम.-
तुझे क्या लगता हैं ???
कहा कमी होगी यारी में हमारी
वफ़ा तो कहीं वफादारी में हमारी
निभानी ना आई या निभा ना पाएं
खुदा सी नहीं खुद्दारी में हमारी
कहा कमी होगी यारी में हमारी.
एस्तोमर की कलम.-